हे! प्रभु सबके सिर पर , मां की छत्र छाया बनाए रखना ।
ना चाहूं दुनिया की दौलत,बस मां का साथ बनाए रखना ।
दूर रह कर तुझसे हे! मां, मुझे तेरी याद पल पल सताती है ,
कुछ भी कर लूं हे! मां, आंखों से तेरी तस्वीर नहीं जाती है।
जीवन रूपी इस नाटक में,मां का पात्र बड़ा खास होता ,
जिनके पास मां नहीं होती,उन्हें इसका अहसास होता है।
वह मां ही है जो जग में, पहला प्यार कहलाती है,
यह अटूट सत्य है कि, मां जीवन जीना सिखाती है।
©Pradeep Sharma
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