चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनो
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से न
मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं
[मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
[वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन]
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
tribute to Sahir Ludhianvi.
ये गीत मुझे बहोत प्रिय हैं क्योंकि ये वो गीत हैं जिसे सुनने के बाद मुझमे पहली बार कुछ लिखने का इच्छा जागी, या बोल सकते हैं मेरे अंदर का poet जागा,
दरअसल ये गाना मैने करीब एक साल पहले रेडियो पर सुना था, इसके lyrics सुनकर मैं मन्त्रमुध होगया था,
पता चला कि इस गाने के गीतकार साहिर लुधियानवी हैं, बस तभी से साहिर लुधियानवी के लिखे गाने सुनना और पड़ना शुरू, फिर क्या था वही मेरी प्रेरणा वही मेरे गुरू बन गए, जो मैं आज poetry कर पाता हूँ इसका बहोत बड़ा श्रेय साहिर लुधियानवी जी