बचपन की यादें, वो यार पुराना
जिसके संग लगता रहा ये जग सुहाना
साथ बचपनकिया था हर काम जहान में
कर गया वो यूं वीरान घराना
वो नानी का आंगन,
वो मामा मौसी की टोली
अब नही चहकती वहां सबकी बोली
फिर से उम्मीद जगा जा ना
भाई मेरे तू बस अब लौट कर आ जाना
लमहें जैसे बिसरे बिसरे
दिल भी अकेले तन्हा ये तन्हा,
बिखरा ये बिसरा ये
टूटा है गिर कर सम्हला नहीं
क्या करेगा सम्हल कर
कितने कसमें वादे रोए
तुम्हें क्या खबर क्या क्या हम खोए
सपनों में, आना जाना
अब बढ़ गया है तुम्हारा
काश कहीं से तुम भी आ जाते
चलता रहा रूठ ज़िन्दगी से,
अनकहा शिकवा लिए टूट ज़िन्दगी से
खैर तुम तो अब आने से रहे
फिर से मिलने के ख्वाब दिखाने से रहे
©yash gauttam