कहूँ कब मैं तुझे मोहन, सदा सावन घटा दे तू ?
सुदर्शन चक्र से पथ के, सभी काँटे हटा दे तू ?
जिसे चाहे उसे दे तू, परमपद इस जमाने में-
मुझे तो बस जरा हँसकर, दही माखन चटा दे तू !
सुनो कान्हा ! तुम्हारे बिन,कहाँ जग में ठिकाना है ?
ठिकाना ढूँढना जग में, स्वयं को खुद मिटाना है ।
रहेगी जब तलक अबतो, हवा इस पाहुने घट में-
तुम्हारे पुण्य चरणों में, विकल जीवन बिताना है ।
©Ashvani Kumar
Jai shree Krishna