चाँद भी क्या ख़ूब है न सर पर घूंघट है न चेहरे पे ब | हिंदी Shayari

"चाँद भी क्या ख़ूब है न सर पर घूंघट है न चेहरे पे बुरका, कभी करवाचौथ का हो गया तो कभी ईद का तो कभी ग्रहण का अगर.. ज़मीन पर होता तो टूट कर विवादों में होता अदालत की सुनवाईयों में होता अख़बार की सुर्खियों में होता लेकिन.. शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है इसलिए ज़मीन में कविताओं और गज़लों में महफूज़ है ©Nitish Chauhan"

 चाँद भी क्या ख़ूब है न सर पर घूंघट है न चेहरे पे बुरका,

कभी करवाचौथ का हो गया तो कभी ईद का तो कभी ग्रहण का

अगर..

ज़मीन पर होता तो टूट कर विवादों में होता अदालत की सुनवाईयों में होता अख़बार की सुर्खियों में होता

लेकिन..

शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है इसलिए ज़मीन में कविताओं और गज़लों में महफूज़ है

©Nitish Chauhan

चाँद भी क्या ख़ूब है न सर पर घूंघट है न चेहरे पे बुरका, कभी करवाचौथ का हो गया तो कभी ईद का तो कभी ग्रहण का अगर.. ज़मीन पर होता तो टूट कर विवादों में होता अदालत की सुनवाईयों में होता अख़बार की सुर्खियों में होता लेकिन.. शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है इसलिए ज़मीन में कविताओं और गज़लों में महफूज़ है ©Nitish Chauhan

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