White आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।
मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।।
डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही।
राह में मिले राहगीर तो सच्चे न थे।।
भटकाया ऐसा मुझे मंजिल से मेरे।
कहीं मेरे फैसले भी तो कच्चे न थे।।
खैर फिर मुड़ चला मंजिल की ओर।
अब देखा कि वो रास्ते तो अच्छे न थे।।
कँटीली झाड़ियाँ बिखरी थीं जहाँ तहाँ।
जाँच कर देखा वो कांँटे तो कच्चे न थे।।
जब संभल कर रखा भी पैर इधर उधर।
तब जाना मेरे जूते भी तो अच्छे न थे।।
चटक चटक कर उखड़ रहे थे जहाँ तहाँ।
मैं हैरान था मेरे जूते भी तो सस्ते न थे।।
कहीं मिला मोची तो ठीक कराए मैंने।
फिर उसने कहा ये जूते तो कच्चे न थे।।
क्यों टूट गए ये जूते यूँ जगह जगह से।
अब लगा आपके ये रास्ते तो अच्छे न थे।।
किसी तरह पाया फिर मंजिल को मैंने।
जबकि आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।।
.........................................................
देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
#आँधियों_के_इरादे_तो_अच्छे_न_थे #nojotohindi #nojotohindipoetry
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।
मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।।
डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही।