White आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे आँधियों के इ | हिंदी Poetry Video

"White आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे। मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।। डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही। राह में मिले राहगीर तो सच्चे न थे।। भटकाया ऐसा मुझे मंजिल से मेरे। कहीं मेरे फैसले भी तो कच्चे न थे।। खैर फिर मुड़ चला मंजिल की ओर। अब देखा कि वो रास्ते तो अच्छे न थे।। कँटीली झाड़ियाँ बिखरी थीं जहाँ तहाँ। जाँच कर देखा वो कांँटे तो कच्चे न थे।। जब संभल कर रखा भी पैर इधर उधर। तब जाना मेरे जूते भी तो अच्छे न थे।। चटक चटक कर उखड़ रहे थे जहाँ तहाँ। मैं हैरान था मेरे जूते भी तो सस्ते न थे।। कहीं मिला मोची तो ठीक कराए मैंने। फिर उसने कहा ये जूते तो कच्चे न थे।। क्यों टूट गए ये जूते यूँ जगह जगह से। अब लगा आपके ये रास्ते तो अच्छे न थे।। किसी तरह पाया फिर मंजिल को मैंने। जबकि आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।। ......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit "

White आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे। मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।। डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही। राह में मिले राहगीर तो सच्चे न थे।। भटकाया ऐसा मुझे मंजिल से मेरे। कहीं मेरे फैसले भी तो कच्चे न थे।। खैर फिर मुड़ चला मंजिल की ओर। अब देखा कि वो रास्ते तो अच्छे न थे।। कँटीली झाड़ियाँ बिखरी थीं जहाँ तहाँ। जाँच कर देखा वो कांँटे तो कच्चे न थे।। जब संभल कर रखा भी पैर इधर उधर। तब जाना मेरे जूते भी तो अच्छे न थे।। चटक चटक कर उखड़ रहे थे जहाँ तहाँ। मैं हैरान था मेरे जूते भी तो सस्ते न थे।। कहीं मिला मोची तो ठीक कराए मैंने। फिर उसने कहा ये जूते तो कच्चे न थे।। क्यों टूट गए ये जूते यूँ जगह जगह से। अब लगा आपके ये रास्ते तो अच्छे न थे।। किसी तरह पाया फिर मंजिल को मैंने। जबकि आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।। ......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit

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आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे।
मंजिल के रास्ते भी तो कच्चे न थे।।

डगमगा रहे मेरे ये कदम बस यूँ ही।

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