हर शक्श से परेशान होने लगी हूं, ये मैं कैसी इंसान | हिंदी Poetry

"हर शक्श से परेशान होने लगी हूं, ये मैं कैसी इंसान होने लगी हूं। अब सबसे दूर रहने के बहाने ढूंढने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। पहले वक्त गुजरता था दोस्तो की महफिलों में, अब वक्त तनहा गुजारने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। कभी ठहाके लगाते नही थकती थी मैं, अब अकेले में भी मुस्कुराती नही मैं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। ©Heer"

 हर शक्श से परेशान होने लगी हूं, 
ये मैं कैसी इंसान होने लगी हूं। 

अब सबसे दूर रहने के बहाने ढूंढने लगी हूं,
ये मैं कैसी होने लगी हूं। 

पहले वक्त गुजरता था दोस्तो की महफिलों में,
अब वक्त तनहा गुजारने लगी हूं,
ये मैं कैसी होने लगी हूं। 

कभी ठहाके लगाते नही थकती थी मैं,
अब अकेले में भी मुस्कुराती नही मैं,
ये मैं कैसी होने लगी हूं।

©Heer

हर शक्श से परेशान होने लगी हूं, ये मैं कैसी इंसान होने लगी हूं। अब सबसे दूर रहने के बहाने ढूंढने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। पहले वक्त गुजरता था दोस्तो की महफिलों में, अब वक्त तनहा गुजारने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। कभी ठहाके लगाते नही थकती थी मैं, अब अकेले में भी मुस्कुराती नही मैं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। ©Heer

ये मैं कैसी होने लगी हूं..!!😔

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