हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं रात अंधेरी है, सूना | हिंदी कविता

"हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं रात अंधेरी है, सूना शहर है, अकेला हूं मैं या ये अंतिम पहर है? पांवों को जकड़े जहां भर की बातें, कैसे दौड़ें, चलें कि तेरे पास होएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? यादें भी सब जैसे धुंधला गई हैं, जिद्दी हैं, दूर तब भी जा ना रही हैं, तेरा गीत अब भी हवा गा रही है, उषा तेरी तस्वीर दिखला रही है। बता कैसे इन सब से फ़ारिग़ होएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? तुम्हारी कमी और क्या क्या करेगी? मैं खाली हूं अंदर, कहां तक भरेगी? है रातों में कोई जो लोरी सुनाए? कांधे पर सुलाए, गले से लगाए? गोदी में सर रख के हम कैसे सोएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? ©Umang Agrawal"

 हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं

रात अंधेरी है, सूना शहर है,
अकेला हूं मैं या ये अंतिम पहर है?
पांवों को जकड़े जहां भर की बातें,
कैसे दौड़ें, चलें कि तेरे पास होएं?
हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं?

यादें भी सब जैसे धुंधला गई हैं,
जिद्दी हैं, दूर तब भी जा ना रही हैं,
तेरा गीत अब भी हवा गा रही है,
उषा तेरी तस्वीर दिखला रही है।
बता कैसे इन सब से फ़ारिग़ होएं?
हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं?

तुम्हारी कमी और क्या क्या करेगी?
मैं खाली हूं अंदर, कहां तक भरेगी?
है रातों में कोई जो लोरी सुनाए?
कांधे पर सुलाए, गले से लगाए?
गोदी में सर रख के हम कैसे सोएं?
हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं?

©Umang Agrawal

हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं रात अंधेरी है, सूना शहर है, अकेला हूं मैं या ये अंतिम पहर है? पांवों को जकड़े जहां भर की बातें, कैसे दौड़ें, चलें कि तेरे पास होएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? यादें भी सब जैसे धुंधला गई हैं, जिद्दी हैं, दूर तब भी जा ना रही हैं, तेरा गीत अब भी हवा गा रही है, उषा तेरी तस्वीर दिखला रही है। बता कैसे इन सब से फ़ारिग़ होएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? तुम्हारी कमी और क्या क्या करेगी? मैं खाली हूं अंदर, कहां तक भरेगी? है रातों में कोई जो लोरी सुनाए? कांधे पर सुलाए, गले से लगाए? गोदी में सर रख के हम कैसे सोएं? हम तो शजर हैं, भला कैसे रोएं? ©Umang Agrawal

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