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जाने कैसा चल रहा, है अदबी ये खेल।
मंच लतीफ़े हिट हुए, कविता होती फेल।।
मान घटा है मंच का, बदली सारी रीत।
तीस मिनट की बतकही, तीन मिनट का गीत।।
फूहड़ता को फूल से, सभी रहे हैं लाद।
अच्छे लेखन को मिली, बस मुठ्ठी भर दाद।।
जो ज़्यादा चिपके रहे, माइक थामे मंच।
कविता के वो नाम पर, केवल करें प्रपंच।।
जब-जब देखूँ दृश्य ये, मन में उठती टीस।
कवयित्री है मंच पर, बन केवल शो पीस।।
कुछ ने अब तक है रखा, फूहड़ता को रोक।
मंचों पर अब चल रहे, नब्बे प्रतिशत जोक।।
©Nilam Agarwalla
#मनीष#