पूछता खुद-ब-खुद में सवाल है आदमी क्यूँ बदल रहा चा

"पूछता खुद-ब-खुद में सवाल है आदमी क्यूँ बदल रहा चाल-ढाल है जगह जानवर की लेने को तैयार है पहले तो मिल जाती थी जूठन या रोटी दो अब आदमी चाहता है बस इनकी बोटी हो ना घर है ना कोई ठिकाना फिरते है य़े इधर- उधर विभिन्न जाति के य़े मवेशियां भूख इनकी भी होती है तीव्र पर समझता नहीं इन्हें कोई जीव अब तो जूठन भी भाग में न आये भले अन्न कचरों में दाल दिए जाए मासूम य़े भी है कौन य़े समझाए आदमी हो आमदनी, सबसे वफादारी निभाये चिंतित है अब पशु समाज कैसे य़े बतलाएँ " आदमी को आखिर कैसे ये समझाएं " मुश्किल है मलाल है, न बोलने से हलाल है बस निकले दम रोज और बिखरे इनकी खाल है । --पांडेय अमित"

 पूछता खुद-ब-खुद में सवाल है

आदमी क्यूँ बदल रहा चाल-ढाल है

जगह जानवर की लेने को तैयार है

पहले तो मिल जाती थी जूठन या रोटी दो

अब आदमी चाहता है बस इनकी बोटी हो

ना घर है ना कोई ठिकाना 

फिरते है य़े इधर- उधर

विभिन्न जाति के य़े मवेशियां

भूख इनकी भी होती है तीव्र

पर समझता नहीं इन्हें कोई जीव

अब तो जूठन भी भाग में न आये

भले अन्न कचरों में दाल दिए जाए

मासूम य़े भी है कौन य़े समझाए

आदमी हो आमदनी, सबसे वफादारी निभाये

चिंतित है अब पशु समाज कैसे य़े बतलाएँ 

" आदमी को आखिर कैसे ये समझाएं "

मुश्किल है मलाल है, न बोलने से हलाल है 

बस निकले दम रोज और बिखरे इनकी खाल है ।
 
--पांडेय अमित

पूछता खुद-ब-खुद में सवाल है आदमी क्यूँ बदल रहा चाल-ढाल है जगह जानवर की लेने को तैयार है पहले तो मिल जाती थी जूठन या रोटी दो अब आदमी चाहता है बस इनकी बोटी हो ना घर है ना कोई ठिकाना फिरते है य़े इधर- उधर विभिन्न जाति के य़े मवेशियां भूख इनकी भी होती है तीव्र पर समझता नहीं इन्हें कोई जीव अब तो जूठन भी भाग में न आये भले अन्न कचरों में दाल दिए जाए मासूम य़े भी है कौन य़े समझाए आदमी हो आमदनी, सबसे वफादारी निभाये चिंतित है अब पशु समाज कैसे य़े बतलाएँ " आदमी को आखिर कैसे ये समझाएं " मुश्किल है मलाल है, न बोलने से हलाल है बस निकले दम रोज और बिखरे इनकी खाल है । --पांडेय अमित

#RIPHUMANITY_ save animals save life . 😔🙁

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