अरे इश्क़ में हम ये क्या कर गए ,
ज़िंदा होते हुए भी कैसे मर गए ?
मैंने सोचा था फलक तक रुकेंगे साथ , लो देखो
वो तो बीच लहर में हाथ छुड़ाकर अपने घर गए !!
तेरे इश्क़ में ख़ुद से समझौते बहुत किए,
ये हम इतना कैसे गिर गए !
उम्मीद थी कि वो आएगा ओ मुझे फिर से जिंदा करेगा..
देर से ही सही पर यकीं आया , आखिर ;
ये कैसी गलतफमियां हम अपने जेहन में भर गए !
ख़ुद को तुझे ही तो दे चुके थे ,
बता मेरा क्या बचा था ?
याद होगा ना वो दिन ,
जब बैठ कर यही समझा रहा था!!
अब ठीक है ना ! तुम जान-ए-बहार हो तो ;
थोड़ा तो नखरा चलता है ,
मद-ए-हुस्न में मेरी जां,
मगर तुम ये क्या क्या कर गए !!
सताए हुए को सताना ,
हमारा हमको सही बतलाना ,
क्यों हमको इतना लज्जित कर गए ?
जन्नत से सुकुं मिला होगा ना जां !! क्यों ???
"अरे हम जो मर गए !!!"
©PuNeet RaAj
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