गजेंद्र 'गौरव'

गजेंद्र 'गौरव'

मुसाफ़िर

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White मुखौटे देखे लाखों मैंने चेहरा दिखना बाकी है हर डाल पर हैं कर्कश कौवे कोयल का दिखना बाकी है है व्याप्त दर्प का अहंकार आलोक शील का बाकी है है डगर अनैतिक भीड़ भरी सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर वाणी यथार्थ की बाकी है सही को कहे सही, गलत को गलत दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है थोड़ी जो कलम ये चलाई है इस पर ही भृकुटी तन गई कुछ अफसाने अभी लिखे हैं काफी कुछ लिखना बाकी है ©गजेंद्र 'गौरव'

#कविता #good_night #rebel  White मुखौटे देखे लाखों मैंने 
चेहरा दिखना बाकी है 
हर डाल पर हैं कर्कश कौवे 
कोयल का दिखना बाकी है 
है व्याप्त दर्प का अहंकार 
आलोक शील का बाकी है 
है डगर अनैतिक भीड़ भरी 
सद्मार्ग की पंक्ति बाकी है 
चाटुकारी - युक्त है जिव्हा मगर 
वाणी यथार्थ की बाकी है 
सही को कहे सही, गलत को गलत 
दृढ़ संकल्पित इस समाज में, हो जाना तो बाकी है 
थोड़ी जो कलम ये चलाई है 
इस पर ही भृकुटी तन गई 
कुछ अफसाने अभी लिखे हैं 
काफी कुछ लिखना बाकी है

©गजेंद्र 'गौरव'
#विचार #इंसान #galiyaan  उम्मीद टूटने से बड़ा नुकसान क्या होगा
रीढ़ की हड्डी टूटी है जिसकी, वो इंसान क्या होगा

लाखों लाशों पर चलकर जिसने ताज पाया है
कुछ लोगों की मौत से वो क्यों परेशान होगा

इंसान - इंसान का दुश्मन बन बैठा जमाने में
जो इंसान ही नहीं वो सोचके क्यों हैरान होगा

भगवान का डर  धरती के बाशिंदों को होना लाजमी है
पर वो क्यों डरेगा जिसे खुद, खुदा होने का गुमान होगा

अपने गुनाह के एवज़ में दूसरों के गुनाह गिनाते हैं
झांकने को तो कम से कम, उनका अपना गिरेबान होगा

©गजेंद्र 'गौरव'
#न्यूज़  जोशीमठ


अंत का आभास किसी को है नही
आरंभ से अंत, परंतु निश्चित है

चिरकाल से मनुष्य खुद को शास्वत समझे 
कौन प्रकृति के लिए यहां चिंतित है

बेकसूरों के मकानों पर दरारें बेहिसाब
मंत्री अफसर कहते फिरें, उत्तराखंड विकसित है

ठंड में ठिठुर रहे अपने घरों से हो बेघर
हुक्मरान भूल करें, आवाम हो रही दंडित है

लोभ की सीमा नहीं तृष्णा बेहिसाब है
मौन व्यर्थ है यहां, मुखरता जवाब है।

मां सुरकंडा दया करो फिर ऐसा संकट ना हो
देवभूमि का कोई शहर, जोशीमठ ना हो


-गजेंद्र गौरव

जोशीमठ अंत का आभास किसी को है नही आरंभ से अंत, परंतु निश्चित है चिरकाल से मनुष्य खुद को शास्वत समझे कौन प्रकृति के लिए यहां चिंतित है बेकसूरों के मकानों पर दरारें बेहिसाब मंत्री अफसर कहते फिरें, उत्तराखंड विकसित है ठंड में ठिठुर रहे अपने घरों से हो बेघर हुक्मरान भूल करें, आवाम हो रही दंडित है लोभ की सीमा नहीं तृष्णा बेहिसाब है मौन व्यर्थ है यहां, मुखरता जवाब है। मां सुरकंडा दया करो फिर ऐसा संकट ना हो देवभूमि का कोई शहर, जोशीमठ ना हो -गजेंद्र गौरव

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जोशीमठ अंत का आभास किसी को है नही आरंभ से अंत, परंतु निश्चित है चिरकाल से मनुष्य खुद को शास्वत समझे कौन प्रकृति के लिए यहां चिंतित है बेकसूरों के मकानों पर दरारें बेहिसाब मंत्री अफसर कहते फिरें, उत्तराखंड विकसित है ठंड में ठिठुर रहे अपने घरों से हो बेघर हुक्मरान भूल करें, आवाम हो रही दंडित है लोभ की सीमा नहीं तृष्णा बेहिसाब है मौन व्यर्थ है यहां, मुखरता जवाब है। मां सुरकंडा दया करो फिर ऐसा संकट ना हो देवभूमि का कोई शहर, जोशीमठ ना हो -गजेंद्र गौरव ©गजेंद्र 'गौरव'

#जोशीमठ #न्यूज़  जोशीमठ


अंत का आभास किसी को है नही
आरंभ से अंत, परंतु निश्चित है

चिरकाल से मनुष्य खुद को शास्वत समझे 
कौन प्रकृति के लिए यहां चिंतित है

बेकसूरों के मकानों पर दरारें बेहिसाब
मंत्री अफसर कहते फिरें, उत्तराखंड विकसित है

ठंड में ठिठुर रहे अपने घरों से हो बेघर
हुक्मरान भूल करें, आवाम हो रही दंडित है

लोभ की सीमा नहीं तृष्णा बेहिसाब है
मौन व्यर्थ है यहां, मुखरता जवाब है।

मां सुरकंडा दया करो फिर ऐसा संकट ना हो
देवभूमि का कोई शहर, जोशीमठ ना हो


-गजेंद्र गौरव

©गजेंद्र 'गौरव'
#शायरी #HumAndNature #snowfall #Nature

इस दफा उसे टेलीफोन नहीं किया नहीं कहा कि स्टेशन समय पर पहुंचना एहतियात से रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़ना नहीं कहा कि सफर में अजनबीयों से दूर रहना अपना सामान हिफाजत से रखना नहीं कहा कि सफर में मुझे फोन करते रहना किसी बीच के स्टेशन पर उतरने से परहेज़ करना नहीं कहा कि रेलगाड़ी पूरी रुकने पर ही उतरना स्टेशन पर पहुंचकर मुझे संदेशा भेजना नहीं कहा, क्योंकि तुम आजाद हो नहीं कहा, क्योंकि तुम मजबूत हो नहीं कहा, क्योंकि तुम जिम्मेदार हो नहीं कहा, क्योंकि तुम मुझसे बेहतर हो ©गजेंद्र 'गौरव'

#कविता  इस दफा उसे टेलीफोन नहीं किया

नहीं कहा कि स्टेशन समय पर पहुंचना
एहतियात से रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़ना

नहीं कहा कि सफर में अजनबीयों से दूर रहना
अपना सामान हिफाजत से रखना

नहीं कहा कि सफर में मुझे फोन करते रहना
किसी बीच के स्टेशन पर उतरने से परहेज़ करना

नहीं कहा कि रेलगाड़ी पूरी रुकने पर ही उतरना
स्टेशन पर पहुंचकर मुझे संदेशा भेजना

नहीं कहा, क्योंकि तुम आजाद हो
नहीं कहा, क्योंकि तुम मजबूत हो

नहीं कहा, क्योंकि तुम जिम्मेदार हो
नहीं कहा, क्योंकि तुम मुझसे बेहतर हो

©गजेंद्र 'गौरव'

इस दफा उसे टेलीफोन नहीं किया नहीं कहा कि स्टेशन समय पर पहुंचना एहतियात से रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़ना नहीं कहा कि सफर में अजनबीयों से दूर रहना अपना सामान हिफाजत से रखना नहीं कहा कि सफर में मुझे फोन करते रहना किसी बीच के स्टेशन पर उतरने से परहेज़ करना नहीं कहा कि रेलगाड़ी पूरी रुकने पर ही उतरना स्टेशन पर पहुंचकर मुझे संदेशा भेजना नहीं कहा, क्योंकि तुम आजाद हो नहीं कहा, क्योंकि तुम मजबूत हो नहीं कहा, क्योंकि तुम जिम्मेदार हो नहीं कहा, क्योंकि तुम मुझसे बेहतर हो ©गजेंद्र 'गौरव'

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