"बारिशें ये खास हैं"
भाव बादल बन गये हैं, मन पे जैसे तन गये हैं
आज फिर से मन है भीगा, बारिशें ये खास हैं।
बारिशों में ख्वाहिशें हैं, हैं बहुत जो आम सी
मन मगर कहता है फिर भी, ख्वाहिशें ये खास हैं।
आज फिर से मन है भीगा, बारिशें ये खास हैं।
मन की बातें बिजलियां बन, फिर से मन पे गिर रहीं
मन मगर दरपन है मेरा, गिर के फिर-फिर फिर रहीं।
गिरती-फिरती बिजलियां ये, बंदिशें स्वर-ताल की
बारिशों संग झूमती सीं, बंदिशें ये खास हैं।
आज फिर से मन है भीगा, बारिशें ये खास हैं।
फिर हवाएं चल रही हैं, सर्द सांसें थामकर
ये हवाएं पहुंचें तुझ तक, कुछ दिखाएं काम कर
सर्द सांसें और हवाएं, लायी हैं फ़रमाइशें
बारिशों में जो हैं पहुंचीं, फ़रमाइशें ये खास हैं।
आज फिर से मन है भीगा, बारिशें ये खास हैं।
बारिशों के बाद वाली, गन्ध मिट्टी से उठे
फूल-भंवरे-तितलियां, मन की धरा पर आ मिले
बंजरों में सावनों की, लगने लगीं नुमाइशें
आज तक देखीं नहीं थीं, नुमाइशें ये खास हैं।
आज फिर से मन है भीगा, बारिशें ये खास हैं।
©Naveen Mahajan
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