मौत आनी है बगैर तेरे अगर, तो चलो गले से लगाया, ज़िंदगी तेरे ख़्वाब का अब हमे कोई शहारा न था। ख़ुदग़र्ज़ नहीं हम ये हमारी असुल-ए-इमान है, यूं सर-ए-महफ़िल अपनी ज़मीर का सौदा हमे गवारा न था।
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