ॐ ● एक अनजान सा आदमी अनजान ख्वाबों के शहर में अनजान शब्दों के जाल बुन रहा है बस यही मेरा परिचय है ● हो सकता है मेरी बातें आपके समझ के परे हो क्योंकि मै ब्रह्मांड की तरह सोच रखकर युग बदलने चला हूं ●दुष्यंत कुमार जी की ये लाइनें मुझे बहुत प्रभावित करती हैं 》सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। ● मेरी खुद की ये लाइने भी मुझे बहुत प्रभावित करती है 》ना ठिकाना है ना घर है ना जमीन है मेरी, आजाद हूँ, पुरी मुट्ठी में बस असमान है मेरी।
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