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White छोड़ जाना है मुझे पर अभी तो नहीं भूल जाना है मुझे पर अभी तो नहीं है कुछ वक्त अभी तेरे दर पर पड़ा रहने दे चला जाऊंगा मैं पर अभी तो नहीं कर ले कुछ गुफ्तगू मन की कुछ अपनी हो जाऊंगा खामोश पर अभी तो नहीं कुछ पल का जरिया बन मेरे चेहरे पर हंसी का रो लूंगा मैं पर अभी तो नहीं ©विजय
विजय
12 Love
हार कर भी रुका नहीं पथ से तनिक भी डिगा नहीं मौसम बदले ,बदले यार पर लक्ष्य कभी बदला नही चोट लगी,पर टूटा नही पानी आंखों से बहने दिया नही अंतर्मन निश्चय किया प्रबल मंजिल पाने से पहले रुका नहीं जीती बाजी कितना जीता नही भाग्य भरोसे कभी रहा नही मेहनत की, विश्वास किया फिर हार का मुंह मैंने देखा नही ©विजय
17 Love
White पड़े है कदम आंगन में जबसे तेरे सबकी खुशी बन गई हो तुम बदनसीब थे जो इस घर में उनका नसीब बन गई हो तुम जनक नही हूं मैं तेरा पर मेरी जानकी बन गई हो तुम मांगते है जो हर कोई खुदा से मेरी वो दुआ बन गई हो तुम मोल नही जिसका जीवन में वो अनमोल रत्न बन गई हो तुम किस्सो में जो अबतक सुना था मेरी वो परी बन गई हो तुम जीवन में जो है मुस्कान हमारे कारण उसका बस हो तुम मन की बस यही है आशा यूं ही खुशी बिखरते रहना तुम HAPPY BIRTHDAY अनन्या "म्याऊं" ©विजय
13 Love
White जिंदगी की जद्दोजहद में हालात ये कैसे बने है भूख जो ले आयी थी शहर वही भूख घर ले चले है पैरों में छाले की न है चिंता पैदल मीलों सब चल पड़े है अपने हाथों से खड़ा किया जो वही शहर अब गैर बन पड़े है भ्रम टूटा है अब सबका अपना जिनको समझे हुए है हकदार क्या हम थे ऐसे लौटने को जैसे मजबूर हुए है मार पड़ी है दोहरी घर रोजगार सब छीन गए है बची हुई सांसे समेटकर जन्मभूमि की ओर चल दिए है सुध न किसी को मेरी दर-दर हम भटक रहे है मजबूर है सब साहब इसलिए मजदूर सब सह रहे है ©विजय
White और लगन अब करनी है बड़ी महल तब बननी है तन से बूंदे और बहनी है किरदार तब अपनी महकनी है कहे ज़माने भर के लोग जो हो रहा है वो होनी है मिलता है सबको फल यहाँ जिसकी जैसी करनी है असंभव है सुराख़ आसमां में संभव उसको अब करनी है जिंदगी भले ही दम तोड़ जाए पर जमीर को जिन्दा रखनी है पंख हमारे न हो तो क्या हौसलो की उड़ान भरनी है दुःख के पर्वत हो तो क्या हँसकर उसको शर्मिंदा करनी है जिन्दा यहाँ पर कौन रहा मौत गले तो लगनी है चार दिन की जिंदगी में हंसी-ख़ुशी से रहनी है ©विजय
11 Love
Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का ©विजय
14 Love
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