विजय

विजय Lives in Patna, Bihar, India

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White छोड़ जाना है मुझे पर अभी तो नहीं भूल जाना है मुझे पर अभी तो नहीं है कुछ वक्त अभी तेरे दर पर पड़ा रहने दे चला जाऊंगा मैं पर अभी तो नहीं कर ले कुछ गुफ्तगू मन की कुछ अपनी हो जाऊंगा खामोश पर अभी तो नहीं कुछ पल का जरिया बन मेरे चेहरे पर हंसी का रो लूंगा मैं पर अभी तो नहीं ©विजय

#कविता #love_shayari  White छोड़ जाना है मुझे
पर अभी तो नहीं 
भूल जाना है मुझे
पर अभी तो नहीं

है कुछ वक्त अभी
तेरे दर पर पड़ा रहने दे
चला जाऊंगा मैं
पर अभी तो नहीं 

कर ले कुछ गुफ्तगू
मन की कुछ अपनी
हो जाऊंगा खामोश
पर अभी तो नहीं 

कुछ पल का जरिया बन
मेरे चेहरे पर हंसी का
रो लूंगा मैं
पर अभी तो नहीं

©विजय

#love_shayari

12 Love

हार कर भी रुका नहीं पथ से तनिक भी डिगा नहीं मौसम बदले ,बदले यार पर लक्ष्य कभी बदला नही   चोट लगी,पर टूटा नही पानी आंखों से बहने दिया नही अंतर्मन निश्चय किया प्रबल मंजिल पाने से पहले रुका नहीं   जीती बाजी कितना जीता नही भाग्य भरोसे कभी रहा नही मेहनत की, विश्वास किया फिर हार का मुंह मैंने देखा नही ©विजय

#कविता  हार कर भी रुका नहीं
पथ से तनिक भी डिगा नहीं
मौसम बदले ,बदले यार
पर लक्ष्य कभी बदला नही

 

चोट लगी,पर टूटा नही
पानी आंखों से बहने दिया नही
अंतर्मन निश्चय किया प्रबल
मंजिल पाने से पहले रुका नहीं

 
जीती बाजी कितना जीता नही
भाग्य भरोसे कभी रहा नही
मेहनत की, विश्वास किया
फिर हार का मुंह मैंने देखा नही

©विजय

हार कर भी रुका नहीं पथ से तनिक भी डिगा नहीं मौसम बदले ,बदले यार पर लक्ष्य कभी बदला नही   चोट लगी,पर टूटा नही पानी आंखों से बहने दिया नही अंतर्मन निश्चय किया प्रबल मंजिल पाने से पहले रुका नहीं   जीती बाजी कितना जीता नही भाग्य भरोसे कभी रहा नही मेहनत की, विश्वास किया फिर हार का मुंह मैंने देखा नही ©विजय

17 Love

White पड़े है कदम आंगन में जबसे तेरे सबकी खुशी बन गई हो तुम बदनसीब थे जो इस घर में उनका नसीब बन गई हो तुम जनक नही हूं मैं तेरा पर मेरी जानकी बन गई हो तुम मांगते है जो हर कोई खुदा से मेरी वो दुआ बन गई हो तुम मोल नही जिसका जीवन में वो अनमोल रत्न बन गई हो तुम किस्सो में जो अबतक सुना था मेरी वो परी बन गई हो तुम जीवन में जो है मुस्कान हमारे कारण उसका बस हो तुम मन की बस यही है आशा यूं ही खुशी बिखरते रहना तुम HAPPY BIRTHDAY अनन्या "म्याऊं" ©विजय

#कविता  White पड़े है कदम आंगन में जबसे तेरे
सबकी खुशी बन गई हो तुम
बदनसीब थे जो इस घर में
उनका नसीब बन गई हो तुम

जनक नही हूं मैं तेरा
पर मेरी जानकी बन गई हो तुम
मांगते है जो हर कोई खुदा से
मेरी वो दुआ बन गई हो तुम

मोल नही जिसका जीवन में
वो अनमोल रत्न बन गई हो तुम
किस्सो में जो अबतक सुना था
मेरी वो परी बन गई हो तुम

जीवन में जो है मुस्कान हमारे
कारण उसका बस हो तुम
मन की बस यही है आशा
यूं ही खुशी बिखरते रहना तुम

HAPPY BIRTHDAY अनन्या "म्याऊं"

©विजय

White पड़े है कदम आंगन में जबसे तेरे सबकी खुशी बन गई हो तुम बदनसीब थे जो इस घर में उनका नसीब बन गई हो तुम जनक नही हूं मैं तेरा पर मेरी जानकी बन गई हो तुम मांगते है जो हर कोई खुदा से मेरी वो दुआ बन गई हो तुम मोल नही जिसका जीवन में वो अनमोल रत्न बन गई हो तुम किस्सो में जो अबतक सुना था मेरी वो परी बन गई हो तुम जीवन में जो है मुस्कान हमारे कारण उसका बस हो तुम मन की बस यही है आशा यूं ही खुशी बिखरते रहना तुम HAPPY BIRTHDAY अनन्या "म्याऊं" ©विजय

13 Love

White जिंदगी की जद्दोजहद में हालात ये कैसे बने है भूख जो ले आयी थी शहर वही भूख घर ले चले है   पैरों में छाले की न है चिंता पैदल मीलों सब चल पड़े है अपने हाथों से खड़ा किया जो वही शहर अब गैर बन पड़े है   भ्रम टूटा है अब सबका अपना जिनको समझे हुए है हकदार क्या हम थे ऐसे लौटने को जैसे मजबूर हुए है मार पड़ी है दोहरी घर रोजगार सब छीन गए है बची हुई सांसे समेटकर जन्मभूमि की ओर चल दिए है   सुध न किसी को मेरी दर-दर हम भटक रहे है मजबूर है सब साहब इसलिए मजदूर सब सह रहे है ©विजय

#कविता  White जिंदगी की जद्दोजहद में
हालात ये कैसे बने है
भूख जो ले आयी थी शहर
वही भूख घर ले चले है

 
पैरों में छाले की न है चिंता
पैदल मीलों सब चल पड़े है
अपने हाथों से खड़ा किया जो
वही शहर अब गैर बन पड़े है

 
भ्रम टूटा है अब सबका
अपना जिनको समझे हुए है
हकदार क्या हम थे ऐसे
लौटने को जैसे मजबूर हुए है


मार पड़ी है दोहरी
घर रोजगार सब छीन गए है
बची हुई सांसे समेटकर
जन्मभूमि की ओर चल दिए है

 
सुध न किसी को मेरी
दर-दर हम भटक रहे है
मजबूर है सब साहब
इसलिए मजदूर सब सह रहे है

©विजय

White जिंदगी की जद्दोजहद में हालात ये कैसे बने है भूख जो ले आयी थी शहर वही भूख घर ले चले है   पैरों में छाले की न है चिंता पैदल मीलों सब चल पड़े है अपने हाथों से खड़ा किया जो वही शहर अब गैर बन पड़े है   भ्रम टूटा है अब सबका अपना जिनको समझे हुए है हकदार क्या हम थे ऐसे लौटने को जैसे मजबूर हुए है मार पड़ी है दोहरी घर रोजगार सब छीन गए है बची हुई सांसे समेटकर जन्मभूमि की ओर चल दिए है   सुध न किसी को मेरी दर-दर हम भटक रहे है मजबूर है सब साहब इसलिए मजदूर सब सह रहे है ©विजय

13 Love

White और लगन अब करनी है बड़ी महल तब बननी है तन से बूंदे और बहनी है किरदार तब अपनी महकनी है कहे ज़माने भर के लोग जो हो रहा है वो होनी है मिलता है सबको फल यहाँ जिसकी जैसी करनी है असंभव है सुराख़ आसमां में संभव उसको अब करनी है जिंदगी भले ही दम तोड़ जाए पर जमीर को जिन्दा रखनी है पंख हमारे न हो तो क्या हौसलो की उड़ान भरनी है दुःख के पर्वत हो तो क्या हँसकर उसको शर्मिंदा करनी है जिन्दा यहाँ पर कौन रहा मौत गले तो लगनी है चार दिन की जिंदगी में हंसी-ख़ुशी से रहनी है ©विजय

#कविता #GoodMorning  White और लगन अब करनी है
बड़ी महल तब बननी है
तन से बूंदे और बहनी है
किरदार तब अपनी महकनी है

कहे ज़माने भर के लोग
जो हो रहा है वो होनी है
मिलता है सबको फल यहाँ
जिसकी जैसी करनी है

असंभव है सुराख़ आसमां में
संभव उसको अब करनी है
जिंदगी भले ही दम तोड़ जाए
पर जमीर को जिन्दा रखनी है

पंख हमारे न हो तो क्या
हौसलो की उड़ान भरनी है
दुःख के पर्वत हो तो क्या
हँसकर उसको शर्मिंदा करनी है

जिन्दा यहाँ पर कौन रहा
मौत गले तो लगनी है
चार दिन की जिंदगी में
हंसी-ख़ुशी से रहनी है

©विजय

#GoodMorning

11 Love

Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का ©विजय

#कविता #Emotional  Men walking on dark street कातिल हूं मैं अपने जीवन-मन का
साहिल हूं मैं इच्छाओं के समंदर का
बेड़ियां हूं मैं अपने बढ़ते हुए कदम का
टूटा तारा हूं मैं अपने ही तारामंडल का

रावण हूं मैं अपने ही आराध्य राम का
कालिख हूँ मैं अपने ही श्वेत दामन का
अंधेरा हूँ मैं अपने घर-आंगन का
कीचड़ हूँ मैं अपने ही मन-कमल का

कांटा हूँ मैं अपने पुष्पित-उपवन का
पत्थर हूँ मैं अपने मंजिल-पथ का
जल्लाद हूँ मैं अपने निश्छल तन का
राख हूँ मैं अपने स्वप्न-महल का

रंक हूँ मैं अपने जन प्रेम-नगर का
रोग हूँ मैं अपने कुल-सुदृढ़ बदन का
दोष हूँ मैं अपने हितजन-सद्गुण का
शोक हूँ मैं अपने ही रंग-महफ़िल का

©विजय

#Emotional

14 Love

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