पता है!सत्य क्या है,
मृत्यु के पालने में सोता हुआ जीवन क्षणिक।
सहजता को भूलता स्वांग में जीता चरित्र।
खोजी मन की चाह किसको,कौन चाहता राह अपनी
बनी बनाई पगडंडियों में चल रहा है आज का पथिक।
क्या नया है जो सिर्फ तेरा जो सिर्फ तेरे ही मन की उपज है
कुछ भी नही एक शब्द भी नही तू तो बस उधार किताबों की उपज है
पता है!सत्य क्या,
मृत्यु के पालने में सोता हुआ जीवन क्षणिक।
©Vikaash Hindwan
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