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पंचतत्वों से बना ये तन, बड़ा चंचल है ये मन, मेरा परिचय, आदित्य कर्ण
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होली! जिसमें "ह" और "ल" का ऐसा संयोग होता है। हल जिसका सुंदर सा योग है। हल! जो किसानों का शस्त्र है। रंग ही जीवन का वस्त्र है। किसान! न तो हिन्दू, न मुसलमान है दोनों है तो ये हिंदुस्तान है। दोनों है तो ये हिंदुस्तान है। ©Aditya Karn
Aditya Karn
10 Love
सुनो! इश्क़ करना है तुमसे वो इश्क़ जो बस इश्क़ होगा, अकेला, अविचल, निश्छल, निराधार जिसमें ज़िद न होगी पाने की डर न होगी खो जाने की न पास रहने की वज़ह होगी न जरूरत पड़ेगी दूर जाने की अग़र कुछ होगा तो बस इश्क़ होगा, न समय का पहरा होगा। चर्चा न होगी खुलेआम नहीं कोई किसी से कुछ कह रहा होगा। कहो! कर सकोगे, ऐसा इश्क़ जो बस इश्क़ होगा। ©Aditya Karn
11 Love
सुबह का ये मौसम आँखों में नींद जल्दी उठने की ज़िद्द ठंडी ठंडी हवाएं उसमें तुम्हारी महक संग तुम्हारी की यादें। इस सब से बेहतर तो सिर्फ़ तुम हो सकती थी न लेक़िन, नहीं ये जो मेरा मन है न बस तुम्हें याद किया तो कर लिया। ©Aditya Karn
9 Love
सुनो! ठुकरा देना मुझे जैसे मारती है ठोकर वो रास्ते का पत्थर, अग़र, अपनाना मुझे तो जैसे राधा ने अपनाया था कृष्ण को बस प्रेम, विश्वास, धैर्य के साथ जैसे उर्मिला ने अपनाया था लक्ष्मण को बस त्याग और इंतज़ार के साथ। जब चाहना तो चाहते रहना केवल हम होंगे हमारे भीतर बाँकी सब शून्य होगा। पाने की ज़िद्द मर करना तो नहीं होगा डर, खोने का न इधर, न उधर। ©Aditya Karn
तेरे इस शहर की सहर में, कुछ तो बात है। वरना, धूप में चांद का यूं दीदार नहीं होता। दिख जाए भी, अगर छुपते छिपाते लेक़िन इतना भी चमकदार नहीं होता।
12 Love
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