Seema sinha

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श्री भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा 'भयंकर' की खूबसूरत रचनाएँ

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ना हताश हुआ ना निराश हुआ तुझसे दुर होकर मगर मै बहुत उदास हुआ। ©Seema sinha

#विचार  ना हताश  हुआ 
ना निराश  हुआ 
तुझसे दुर होकर  मगर 
मै बहुत  उदास  हुआ।

©Seema sinha

# दुरी

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#शायरी #दुरी  ना हताश हुआ  ना निराश हुआ 
तुझसे दूर होकर 
मै बहुत उदास  हुआ

©Seema sinha

#दुरी

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मुझे रोकने के लिए पता नही कितने बहाने बनाती धी तु माँ तु पैर से चल नही पाती धी फिर भी मुझे रेलिंग तक छोड़ने जरूर आती थी माँ तेरी सारी ममता का मुझे एहसास हुआ माँ पर अफसोस ये तेरे जाने के बाद हुआ माँ ©Seema sinha

#कविता  मुझे रोकने  के लिए  पता नही
कितने बहाने बनाती धी तु माँ 
तु पैर से चल नही पाती धी फिर भी
मुझे रेलिंग  तक छोड़ने जरूर आती थी माँ 
तेरी सारी ममता का  मुझे एहसास  हुआ माँ 
पर अफसोस ये तेरे जाने के बाद  हुआ  माँ

©Seema sinha

मुझे रोकने के लिए पता नही कितने बहाने बनाती धी तु माँ तु पैर से चल नही पाती धी फिर भी मुझे रेलिंग तक छोड़ने जरूर आती थी माँ तेरी सारी ममता का मुझे एहसास हुआ माँ पर अफसोस ये तेरे जाने के बाद हुआ माँ ©Seema sinha

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अब तेरी हर बात समझ मे आती है माँ, सही गलत का फर्क आज भी तु बताती है माँ । आज तु नही पर तेरी बाते मेरे साथ है , क्योकि आज भी मेरे सिर पे तेरा हाथ होने का एहसास है । हर दुख से तु मुझे बचाती है माँ, आज भी तु बहुत याद आती है माँ। ©Seema sinha

#कविता  अब तेरी हर बात समझ मे आती है माँ,
सही गलत का फर्क आज भी तु बताती है माँ ।
आज तु नही पर तेरी बाते मेरे साथ है ,
क्योकि आज भी मेरे सिर पे तेरा हाथ होने का एहसास  है ।
हर दुख  से तु मुझे बचाती है माँ,
आज भी तु बहुत  याद आती है माँ।

©Seema sinha

माँ

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ये जमीं हमसे है , आसमां हमसे है । युगो- युगो से देखो , सारा जहान हमसे है। आओ अपने पंख फैलाएं, हम सब मिलकर महिलादिवस मनाऐ। ©#Bikhre__phool

#कविता #womensday  ये जमीं हमसे है ,
आसमां हमसे है ।
युगो- युगो से देखो ,
सारा जहान हमसे है।
आओ अपने पंख फैलाएं, 
हम सब मिलकर महिलादिवस मनाऐ।

©#Bikhre__phool

#womensday

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कट रही है जिंदगी जैसे जी रहे वनवास में, हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में, हम तड़पते हैं डयूटी में, परिवार चिंतित है गाँव में, जिंदगी मानव ठहर सी गई है, बेड़ी जकड़ी हो पांव में, घर में राशन नहीं फिर भी डयूटी जाते हैं, सारी दुकानें बंद हो जाती है जब हम वापस आतें है, माँ बाप सिसक कर पूछ रहे बेटा कैसे खाते हो, जब पूरा देश बंद है तो तुम क्यों डयूटी जाते हो, यहाँ सबकुछ मिल रहा है झूठ बोल माँ को समझाते हैं, देश के लिये है यह जीवन ईसलिए डयूटी जाते हैं, सेना शिछक डाक्टर नहीं है अतः सम्मान नहीं हम पाते हैं, हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में. - MUKESH SRIVASTAVA

 कट रही है जिंदगी जैसे जी रहे वनवास में, 
हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में, 
हम तड़पते हैं डयूटी में, परिवार चिंतित है गाँव में, 
जिंदगी मानव ठहर सी गई है, 
बेड़ी जकड़ी हो पांव में, 
घर में राशन नहीं फिर भी डयूटी जाते हैं, 
सारी दुकानें बंद हो जाती है 
जब हम वापस आतें है, 
माँ बाप सिसक कर पूछ रहे बेटा कैसे खाते हो, 
जब पूरा देश बंद है तो तुम क्यों डयूटी जाते हो, 
यहाँ सबकुछ मिल रहा है
झूठ बोल माँ को समझाते हैं, 
देश के लिये  है यह जीवन ईसलिए डयूटी जाते हैं, 
सेना शिछक डाक्टर नहीं है अतः सम्मान नहीं हम पाते हैं, 
हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में. 

- MUKESH SRIVASTAVA

कट रही है जिंदगी जैसे जी रहे वनवास में, हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में, हम तड़पते हैं डयूटी में, परिवार चिंतित है गाँव में, जिंदगी मानव ठहर सी गई है, बेड़ी जकड़ी हो पांव में, घर में राशन नहीं फिर भी डयूटी जाते हैं, सारी दुकानें बंद हो जाती है जब हम वापस आतें है, माँ बाप सिसक कर पूछ रहे बेटा कैसे खाते हो, जब पूरा देश बंद है तो तुम क्यों डयूटी जाते हो, यहाँ सबकुछ मिल रहा है झूठ बोल माँ को समझाते हैं, देश के लिये है यह जीवन ईसलिए डयूटी जाते हैं, सेना शिछक डाक्टर नहीं है अतः सम्मान नहीं हम पाते हैं, हम तो बैंक वाले है डयूटी करना हर हाल में. - MUKESH SRIVASTAVA

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