सुरेश सारस्वत

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नवरात्रि पर्व पर सभी मित्रों को शुभ कामनाएँ "माँ" के प्रति अपने भावों के साथ **************************************************************************** माँ सुनो ....माँ सुनो ........द्वार तेरे मैं खड़ा प्रार्थना आराधना के लिए दीप तेरे मैं खड़ा । तू ही दुर्गा,तू ही लक्ष्मी तू ही माँ सरस्वती दरस अंतर देती तू जब कृपा बन बरसती देख आँखें माँ मेरी तेरे दरस को तरसती सुर स्वरों में लिए तुझे माँ द्वार तेरे मैं खड़ा नाम तेरे हैं सहस्त्र, पर मैं तो जानूँ एक नाम होता है सब दरस जब मैं पुकारूँ माँ ही नाम प्रेम, करुणा,स्नेह ,ममता तुझसे है तेरा नाम सिर पे रख दे हाथ माँ कब से झुकाये मैं खड़ा अद्भुत अलौकिक रूप तेरे देखता अंतर में जब नयन भरे भरे नेह जल बहती है तू माँ गंगा बन मूढ़ हूँ ,अज्ञानी मैं,आलोक उज्जवल मन में भर सब तिमिर अंतर के काट माँ द्वार तेरे मैं खड़ा ©सुरेश सारस्वत

#भक्ति #Navraatra  नवरात्रि पर्व पर सभी मित्रों को शुभ कामनाएँ "माँ" के प्रति अपने  भावों के साथ 
****************************************************************************
माँ सुनो ....माँ सुनो ........द्वार तेरे मैं खड़ा 
प्रार्थना आराधना के लिए दीप तेरे मैं खड़ा ।

तू ही दुर्गा,तू ही लक्ष्मी तू ही माँ सरस्वती 
दरस अंतर देती तू जब कृपा बन बरसती 
देख  आँखें माँ मेरी  तेरे दरस को तरसती 
सुर स्वरों में लिए तुझे माँ द्वार तेरे मैं खड़ा 

नाम तेरे हैं सहस्त्र, पर मैं तो जानूँ एक नाम 
होता है सब दरस जब मैं पुकारूँ माँ ही नाम 
प्रेम, करुणा,स्नेह ,ममता तुझसे है तेरा नाम 
सिर पे रख दे हाथ माँ कब से झुकाये मैं खड़ा 

अद्भुत अलौकिक रूप तेरे देखता अंतर में जब 
नयन भरे भरे नेह जल बहती है तू माँ गंगा बन 
मूढ़ हूँ ,अज्ञानी मैं,आलोक उज्जवल मन में भर 
सब तिमिर अंतर के काट  माँ द्वार तेरे मैं खड़ा

©सुरेश सारस्वत

#Navraatra

9 Love

White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत

#शायरी  White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ 
खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ

वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना 
खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ

सच है यही रोशनी जब भी उतरी
बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ 

नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं 
सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ

पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें 
कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ

©सुरेश सारस्वत

White खुद में उतरकर जब भी मिला हूँ खुद से ही मैं सबसे ज्यादा डरा हूँ वक़्त ने है दिखाया जब भी आइना खुद से अक्सर मैं छिपता फिरा हूँ सच है यही रोशनी जब भी उतरी बनकर परछाई मैं खुद से घिरा हूँ नहीं काफ़िलों में मिले हमसफ़र हैं सफ़र में अकेला मैं तन्हां चला हूँ पुरानी सी बस्ती में बिखरी हैं यादें कि जैसे पुराना सा खंडहर बना हूँ ©सुरेश सारस्वत

11 Love

White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं मैं आंखें बंद करके मौन ध्यान में भी विचलित रहता हूं मेरा भय मेरे अंतर में पसरा हुआ है मेरा विश्वास भी अंतर में मौजूद है यदा कदा विश्वास से भय भयभीत हो जाता है यही वो क्षण है जब मन अपनी ताकत को स्वयं में देखता है यही वो क्षण जब चेतना का स्पर्श बिजली की तरह रगों में दौड़ता है एक बड़ा बदलाव अंतर में प्रकट होता है मन उत्तिष्ठत जाग्रत की चेतना बन जाता है सच निर्भीकता से अपने गंतव्य को स्पष्ट कर देता है विश्वास निर्भीकता को पोषित करता है मौन ध्यान में विश्वास खिलता है ©सुरेश सारस्वत

#विचार  White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं
मैं आंखें बंद करके मौन ध्यान में भी विचलित रहता हूं
मेरा भय मेरे अंतर में पसरा हुआ है
मेरा विश्वास भी अंतर में मौजूद है
यदा कदा विश्वास से भय भयभीत हो जाता है
यही वो क्षण है जब मन अपनी ताकत को स्वयं में देखता है
यही वो क्षण जब चेतना का स्पर्श बिजली की तरह रगों में दौड़ता है
 एक बड़ा बदलाव अंतर में प्रकट होता है 
मन उत्तिष्ठत जाग्रत की चेतना बन जाता है 
 सच निर्भीकता से अपने गंतव्य को स्पष्ट कर देता है
 विश्वास निर्भीकता को पोषित करता है 
मौन ध्यान में विश्वास खिलता है

©सुरेश सारस्वत

# आज का विचार

11 Love

White सहज मिल रही है खुशी बेशकीमत है .... मगर एहसास नहीं ... कोई परोस कर दे इसका इंतज़ार है .... नियति ...ये प्रश्न है तुमसे .... कब तक सहज बिखरी खुशी से... ऐसे मिलेंगे हम क्या ये इंकार नहीं ... कहीं ऐसा ना हो कोई परोसे इस इंतज़ार में कोई और बटोर ले.... खुशी मेरी-तेरी नहीं होती... एहसासों में ढालना पड़ता है ... खुशी की भूख चमकती है... इच्छाएँ ठुमकती हैं .... एहसासों के हाथ खुद-ब-खुद उठते हैं ... दूर-सुदूर गाँव से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से लहराती नदियों से उछलती लहरों से शांत किनारों से बहती हवाओं से नियति ये हैं सारे तुम्हारे ही इशारे ... और कभी-कभी जो आस-पास है जिसके नाम है खुशी वो ही अनजान है क्यों...होता है ऐसे नियति ... ये तुमसे प्रश्न है ©सुरेश सारस्वत

#कविता  White 

सहज मिल रही है खुशी 
बेशकीमत है ....
मगर एहसास नहीं ... 
कोई परोस कर दे 
इसका इंतज़ार है ....
नियति ...ये प्रश्न है तुमसे ....

कब तक सहज बिखरी खुशी से...
ऐसे मिलेंगे हम 
क्या ये इंकार नहीं ...
कहीं ऐसा ना हो 
कोई परोसे इस इंतज़ार में 
कोई और बटोर ले....  
खुशी मेरी-तेरी नहीं होती... 
एहसासों में ढालना पड़ता है ...  
खुशी की भूख चमकती है... 
इच्छाएँ ठुमकती हैं ....
एहसासों के हाथ खुद-ब-खुद उठते हैं ...  
दूर-सुदूर गाँव से 
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से 
लहराती नदियों से 
उछलती लहरों से 
शांत किनारों से 
बहती हवाओं से 
नियति ये हैं सारे तुम्हारे ही इशारे ... 

और कभी-कभी 
जो आस-पास है 
जिसके नाम है खुशी 
वो ही अनजान है 
क्यों...होता है ऐसे 
नियति ... ये तुमसे प्रश्न है

©सुरेश सारस्वत

White सहज मिल रही है खुशी बेशकीमत है .... मगर एहसास नहीं ... कोई परोस कर दे इसका इंतज़ार है .... नियति ...ये प्रश्न है तुमसे .... कब तक सहज बिखरी खुशी से... ऐसे मिलेंगे हम क्या ये इंकार नहीं ... कहीं ऐसा ना हो कोई परोसे इस इंतज़ार में कोई और बटोर ले.... खुशी मेरी-तेरी नहीं होती... एहसासों में ढालना पड़ता है ... खुशी की भूख चमकती है... इच्छाएँ ठुमकती हैं .... एहसासों के हाथ खुद-ब-खुद उठते हैं ... दूर-सुदूर गाँव से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से लहराती नदियों से उछलती लहरों से शांत किनारों से बहती हवाओं से नियति ये हैं सारे तुम्हारे ही इशारे ... और कभी-कभी जो आस-पास है जिसके नाम है खुशी वो ही अनजान है क्यों...होता है ऐसे नियति ... ये तुमसे प्रश्न है ©सुरेश सारस्वत

15 Love

White नश्वर देह .... चंचल मन .... अजर आत्मा ... अनंत आँखें .... देखती हैं बस .... बस एक रूप ....दृश्य लावण्य रूप लुप्त चैतन्य ... उन्मुक्त भाव ... भागते हुए दूर अनन्यता से ... भटकते हुए मोहजाल में ... लिपटे हुए दृश्य-रंग से .... रिक्त...रिक्त....कुछ भी लब्ध नहीं .... लिप्सा बढ़ती हुई अमर बेल सी ... लालसा चढ़ती हुई अमर कि कामना संग ... ढूंढते हैं सत्य-रूप ... क्या है यही जीवन सच ... हर पल ...भ्रमित ओढ़ते हुए कुछ नया वरण-आवरण ... ये कैसी यात्रा ... ये कैसा स्वरूप ... है प्रभु ....दे मुझे बस ... शून्य....शून्य....शून्य स्वरूप.... ©सुरेश सारस्वत

#कविता #sad_shayari  White नश्वर देह .... 
चंचल मन ....
अजर आत्मा ...
अनंत आँखें .... 
देखती हैं बस ....
बस एक रूप ....दृश्य लावण्य रूप 
लुप्त चैतन्य ...
उन्मुक्त भाव ...
भागते हुए दूर अनन्यता से ...
भटकते हुए मोहजाल में ...
लिपटे हुए दृश्य-रंग से ....
रिक्त...रिक्त....कुछ भी लब्ध नहीं ....
लिप्सा बढ़ती हुई अमर बेल सी ...
लालसा चढ़ती हुई अमर कि कामना संग ...
 ढूंढते हैं सत्य-रूप ... 
क्या है यही जीवन सच ...
हर पल ...भ्रमित ओढ़ते हुए 
कुछ नया वरण-आवरण ...
ये कैसी यात्रा ...
ये कैसा स्वरूप ...
है प्रभु ....दे मुझे बस ...
शून्य....शून्य....शून्य स्वरूप....

©सुरेश सारस्वत

#sad_shayari

9 Love

White इक नज़्म हर सहर फ़रमान है मन जागा पूरी रात है एक ही अरमान है ... एक ही जज़्बात है... नए जागे जागे ख्वाब है...२ Hmm hmm hmm hmmm अज़ान की आवाज़ से नए गूंजते अल्फ़ाज़ है उतर उतर गहरे उतर ठहर ठहर रूहे बसर जगा रहे नए ख्वाब है...२ Hmm hmm hmm hmmm... बदल गई नज़र नज़र क्यों है भरम पूछे करम इमरोज़ की आंखे भरी माजी की हर इक बात से भीगे हुए सब ख्वाब हैं...२ Hmm hmmm hmmm hmm... पंख अब खुलते नहीं अर्श अब झुकते नहीं मेरी ज़मीं मुझे पूछती कहां खो गई परवाज़ है किससे जुड़े नये ख्वाब है...२ Hmm hmmm hmmm hmm... ©सुरेश सारस्वत

#शायरी #GoodMorning  White इक नज़्म 

हर सहर फ़रमान है
मन जागा पूरी रात है
एक ही अरमान है ...
एक ही जज़्बात है...
नए जागे जागे ख्वाब है...२
Hmm hmm hmm hmmm
अज़ान की आवाज़ से
नए गूंजते अल्फ़ाज़ है
उतर उतर गहरे उतर
ठहर ठहर रूहे बसर
जगा रहे नए ख्वाब है...२
Hmm hmm hmm hmmm...
बदल गई नज़र नज़र
क्यों है भरम पूछे करम
इमरोज़ की आंखे भरी
माजी की हर इक बात से
भीगे हुए सब ख्वाब हैं...२
Hmm hmmm hmmm hmm...
पंख अब खुलते नहीं
अर्श अब झुकते नहीं
मेरी ज़मीं मुझे पूछती
कहां खो गई परवाज़ है
किससे जुड़े नये ख्वाब है...२
Hmm hmmm hmmm hmm...

©सुरेश सारस्वत

#GoodMorning

12 Love

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