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रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए जब हौसला बुलंद होता है जिंदगी में कितनी भी मुश्किल आए, खुद को टूटने नहीं देता है, हार-जीत को जिंदगी का हिस्सा मान जिंदगी को पूरे दिल से जीता है,ऐसा इंसान ही हर मुश्किल को आसान बना लेता है, कितनी बार भी गिर जाए उठ खड़ा होता है| ©KaLpAnA

#Roz_Roz_Mitte_Hai  रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए जब हौसला बुलंद होता है जिंदगी में कितनी भी मुश्किल आए, खुद को टूटने नहीं देता है, हार-जीत को जिंदगी का हिस्सा मान जिंदगी को पूरे दिल से जीता है,ऐसा इंसान ही हर मुश्किल को आसान बना लेता है, कितनी बार भी गिर जाए उठ खड़ा होता है|

©KaLpAnA

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए पर कभी ना कभी तो ये जिंदगी खा़क होगी इसलिए हर पल को खुल कर जिओ कोई नहीं जानता है कौन सा पल जिंदगी का आखि़री पल बन जाए #मेरे लफ़्ज़# ©Anjana

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पर कभी ना कभी तो ये जिंदगी खा़क होगी
इसलिए हर पल को खुल कर जिओ
कोई नहीं जानता है कौन सा पल
 जिंदगी का आखि़री पल बन जाए
#मेरे लफ़्ज़#

©Anjana

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार का अन्त शीघ्र ! साध्वी रिथम्भरा ने मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकद्दमे में 29.06.2020 को न्यायालय में दाखिल होने से पहले यह बयान देना कि,"मस्जिद का गिराया जाना सदियों की मानसिक गुलामी से आजादी जैसा", साध्वी का यह भी कहना कि," मैं इस मामले में कुसूर-वार नहीं", न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ाते जाना है। देश अच्छी तरह जानता है कि ऐसा किस बूते पर कहा जाता है ? किस को खुश करने को कहा जाता है? ऐसे कई साधु और साध्वियों को पालतू पशुओं की तरह प्रयोग आर एस एस और भाजपा के अतिरिक्त कौन कर सकता है। ऐसे कामों के लिए रासुका और यूएपीए नहीं लगायेंगे? चाहे वो दिल्ली दंगों के नायक हों या कोई दूसरे-तीसरे? देश पूछता है जो भी देश के मूल निवासियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर सहस्त्रों शताब्दियों तक सामाजिक गुलामी के अत्याचार करते रहे क्या उन का विध्वंश बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह नहीं होना चाहिए ? इस में भी कोई कुसूर वार न ठहराया जाएगा? न्याय तो तभी होगा ।

#Roz_Roz_Mitte_Hai  रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार का अन्त शीघ्र !
साध्वी रिथम्भरा ने मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकद्दमे में 29.06.2020 को न्यायालय में दाखिल होने से पहले यह बयान देना कि,"मस्जिद का गिराया जाना सदियों की मानसिक गुलामी से आजादी जैसा", साध्वी का यह भी कहना कि," मैं इस मामले में कुसूर-वार नहीं", न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ाते जाना है। देश अच्छी तरह जानता है कि ऐसा किस बूते पर कहा जाता है ? किस को खुश करने को कहा जाता है? ऐसे कई साधु और साध्वियों को पालतू पशुओं की तरह प्रयोग आर एस एस और भाजपा के अतिरिक्त कौन कर सकता है। ऐसे कामों के लिए रासुका और यूएपीए नहीं लगायेंगे? चाहे वो दिल्ली दंगों के नायक हों या कोई दूसरे-तीसरे? देश पूछता है जो भी देश के मूल निवासियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर सहस्त्रों शताब्दियों तक सामाजिक गुलामी के अत्याचार करते रहे क्या उन का विध्वंश बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह नहीं होना चाहिए ? इस में भी कोई कुसूर वार न ठहराया जाएगा? न्याय तो तभी होगा ।

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए परेशानी कम और खुशियां हो ज्यादा ऐसे इत्तिफाक न हुए.. ✍️फरहाना

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✍️फरहाना

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए teri yaado ne hr lmhaa jlaaya , fir v raakh na huye . khyalo mai mile tere hmesaa fir v paak na huye.roj roj mitt te hai fir v khaak na huye.

#Roz_Roz_Mitte_Hai  रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए teri yaado ne hr lmhaa jlaaya , fir v raakh na huye . khyalo mai mile tere hmesaa fir v paak na huye.roj roj mitt te hai fir v khaak na huye.

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए रोज़ मिटते हैं ख़्वाब मेरे रोज़ मैं बना ही लेती हूँ जब मिलता नहीं कोई ख़ुद से दिल बहला लेती हूँ

#Roz_Roz_Mitte_Hai #अनुभव  रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए  रोज़ मिटते हैं ख़्वाब मेरे
रोज़ मैं बना ही लेती हूँ
जब  मिलता नहीं  कोई  
ख़ुद से दिल बहला लेती हूँ
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