Journey
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Journey राह पर ढूंढ रहे थे हम भी पैरो के वो निशान, मिल जाए गर एक चिन्ह भी उनके होने का ही सही। बदल दिया था अपना ठिकाना ना जाने किस कारण से, निकल पड़े फिर ना जाने वो कौन सी ऐसी राहो पर। पता अगर जो बता जाते तो, हम फिर मिल जाते उनसे, अब तो बस ढूंढ रहे है, राहों पर उनके ही निशान। ©Heer

#उनके #Journey  Journey 

राह पर ढूंढ रहे थे हम भी पैरो के वो निशान, 
मिल जाए गर एक चिन्ह भी उनके होने का ही सही।

 बदल दिया था अपना ठिकाना ना जाने किस कारण से, 
निकल पड़े फिर ना जाने वो कौन सी ऐसी राहो पर। 

पता अगर जो बता जाते तो, हम फिर मिल जाते उनसे, 
अब तो बस ढूंढ रहे है, राहों पर उनके ही निशान।

©Heer

#Journey #उनके होने का निशान

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स्पर्श चाहे जिस भी प्राणी का हो अगर मन को स्पर्श कर ले तो मनुष्य परत दर परत खुलता जाता है ©vidushi MISHRA

#विचार #Journey  स्पर्श चाहे जिस भी प्राणी 
का हो 
अगर मन को स्पर्श कर ले
 तो 
मनुष्य परत दर परत 
खुलता जाता
 है

©vidushi MISHRA

#Journey

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सफ़र कितना ही दराज़ हो जाए ’मोहसिन’ इख्तिताम फकत एक पल का होगा... ✍️✍️मुर्तजा ©Murtaza Ali

#Journey  सफ़र कितना ही दराज़ हो जाए ’मोहसिन’
इख्तिताम फकत एक पल का होगा...
✍️✍️मुर्तजा

©Murtaza Ali

#Journey

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#Motivational #nojotoquotes #nojotohindi #NojotoFilms #Motivation #Rajdeep  Hmangaihna lehkhathawn pathum hnung lamah chuan hliam lehkhathawn pathumte chu a inthup tlat!

©Rajdeep

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#विचार #Journey  जीवन में ऐसे कई असफल लोग होंगे जिन्हें ये भी एहसास नहीं होगा कि वो जीत के कितने नज़दीक थे!!

©KRISHNA

#Journey

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ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

#शायरी  ग़ज़ल 

धूप में ही अक्सर खिलता हूँ 
मैं आँसू का इक क़तरा हूँ 

उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ 
जबसे इक अफ़वाह बना हूँ 

बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ 
जब भी पत्थर पर बरसा हूँ 

तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा 
उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ 

तुम तो बस मशहूर हुये हो 
गली-गली तो मैं रुसवा हूँ 

भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम 
आख़िर मैं कितना तनहा हूँ 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad

ग़ज़ल धूप में ही अक्सर खिलता हूँ मैं आँसू का इक क़तरा हूँ उसके बिस्तर तक पहुँचा हूँ जबसे इक अफ़वाह बना हूँ बूँद-बूँद खुद ही टूटा हूँ जब भी पत्थर पर बरसा हूँ तुमसे बिछड़कर लम्हा-लम्हा उम्र क़ैद सा मैं गुजरा हूँ तुम तो बस मशहूर हुये हो गली-गली तो मैं रुसवा हूँ भीड़ में हूँ तो क्या जानो तुम आख़िर मैं कितना तनहा हूँ @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद' ©Dharmendra Azad

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