गीत :-
हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात ।
मन
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गीत :- हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात । मन को लेता मोह सभी के , जब आती बरसात ।। हरे-भरे खेतो की हलधर.... पत्ते-पत्ते पर है ठहरी , बारिश की हर बूँद । कर उनका एहसास कभी तू , अपनी आँखें मूँद ।। मोती जैसे ही लगते हैं , चाहे पेड़ बबूल । पर इनके भी दिन ढलते हैं , आती है फिर रात । हरे-भरे खेतो की हलधर..... सुनो प्रकृति के जैसा जीवन , होता कहाँ नसीब । जिनको भी मिलता है जीवन , कहते हमीं गरीब ।। हमने देखा नित्य प्रकृति ही, देती सबको सीख । तब ही मानव जीवन की सुन , हो सुंदर शुरुआत । हरे-भरे खेतों की हलधर..... इनके भी हो घाव हरे सुन , होता इनमें दर्द । लेकिन देने वाला ही अब, कहता खुद को मर्द ।। फिर भी खूब हँसातें सबको , रखकर हृदय विशाल पूर्ण जरूरत सबकी करता , पाकर जग से घात ।। हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात । मन को लेते मोह सभी के , जब आती बरसात ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :-
हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात ।
मन को लेता मोह सभी के , जब आती बरसात ।।
हरे-भरे खेतो की हलधर....

पत्ते-पत्ते पर है ठहरी , बारिश की हर बूँद ।
कर उनका एहसास कभी तू , अपनी आँखें मूँद ।।
मोती जैसे ही लगते हैं , चाहे पेड़ बबूल ।
पर इनके भी दिन ढलते हैं , आती है फिर रात ।
हरे-भरे खेतो की हलधर.....

सुनो प्रकृति के जैसा जीवन , होता कहाँ नसीब ।
जिनको भी मिलता है जीवन , कहते हमीं गरीब ।।
हमने देखा नित्य प्रकृति ही, देती सबको सीख ।
तब ही मानव जीवन की सुन , हो सुंदर शुरुआत ।
हरे-भरे खेतों की हलधर.....

इनके भी हो घाव हरे सुन , होता इनमें दर्द ।
लेकिन देने वाला ही अब, कहता खुद को मर्द ।।
फिर भी खूब हँसातें सबको , रखकर हृदय विशाल
पूर्ण जरूरत सबकी करता , पाकर जग से घात ।।

हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात ।
मन को लेते मोह सभी के , जब आती बरसात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- हरे-भरे खेतों की हलधर , बतलाता है बात । मन को लेता मोह सभी के , जब आती बरसात ।। हरे-भरे खेतो की हलधर....

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