मैंने लिखा था बहुत पहले....... 
 कि, थकान की किमत
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मैंने लिखा था बहुत पहले....... कि, थकान की किमत तुझे पता कहां....? चले थे बड़े शौक से वक्त ए बर्बादी करने सो देख अब, वो कहां..... और मैं कहां...? अज़िय्यत शाख पे तो ठंडी हवा आती थी उसे वक्त दें देकर , रातें दो तीन हो जाती थी पूछने पर वो ख़ामोश शब्दें कहती थी...... और दुसरे हाथों से लुप्त ए इश्क़ मनातीं थी... घंटों बैठकर इसी कुर्सी पे खाली आसमां देखता था लौटकर आएंगी इसी सोच में तो रात से दिन निकल जाता था..... आज देखा कि, खिलता गुलाब उसके होंठों पे... और धुमिल होते देखा वक्त की चांद को उसके पैरों पे...! ©Dev Rishi

#कविता  मैंने लिखा था बहुत पहले....... 
 कि, थकान की किमत तुझे पता कहां....?
चले थे बड़े शौक से वक्त ए बर्बादी करने 
सो देख अब, वो कहां..... और मैं कहां...?
अज़िय्यत शाख पे तो ठंडी हवा आती थी 
उसे वक्त दें देकर , रातें दो तीन हो जाती थी
पूछने पर  वो ख़ामोश शब्दें कहती थी...... 
और दुसरे हाथों से लुप्त ए इश्क़ मनातीं थी... 
घंटों बैठकर इसी कुर्सी पे खाली आसमां देखता था 
लौटकर आएंगी इसी सोच में तो रात से दिन निकल जाता था.....
आज देखा कि, खिलता गुलाब उसके होंठों पे... 
और धुमिल होते देखा वक्त की चांद को उसके पैरों पे...!

©Dev Rishi

कुर्सी, यादों की..! प्रेम कविता

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