कभी धूप सा चिल-चिलाते है कभी छाँव सा ठहर जाते है | हिंदी कविता
"कभी धूप सा चिल-चिलाते है
कभी छाँव सा ठहर जाते है
हमारे अग्रज हमे अक्सर
जिंदगी जीना सिखाते है
मगर,हम भी आजाद पंछी सा
शरहद के पार आसमान मे उड़ कर जाते है
- subhay"
कभी धूप सा चिल-चिलाते है
कभी छाँव सा ठहर जाते है
हमारे अग्रज हमे अक्सर
जिंदगी जीना सिखाते है
मगर,हम भी आजाद पंछी सा
शरहद के पार आसमान मे उड़ कर जाते है
- subhay