डूबती रही कश्ती मगर, किनारा न मिला। लड़खड़ाते रहे | हिंदी शायरी

"डूबती रही कश्ती मगर, किनारा न मिला। लड़खड़ाते रहे कदम मगर, सहारा न मिला। दुनिया की इस भीड़ में, हम ढूंढते रहे अपनों को, मतलबी दयार में कोई, हमारा न मिला। ©Shreshth"

 डूबती रही कश्ती मगर,
किनारा न मिला।
लड़खड़ाते रहे कदम मगर,
सहारा न मिला।
दुनिया की इस भीड़ में,
हम ढूंढते रहे अपनों को,
मतलबी दयार में कोई,
हमारा न मिला।

©Shreshth

डूबती रही कश्ती मगर, किनारा न मिला। लड़खड़ाते रहे कदम मगर, सहारा न मिला। दुनिया की इस भीड़ में, हम ढूंढते रहे अपनों को, मतलबी दयार में कोई, हमारा न मिला। ©Shreshth

#Life

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