" फ़रमानी इश्क़
यूँही तो मोहोंब्बत नही होती उनसे
इश्क़ फ़रमाना पड़ता हैं
कुछ खोने के लिये ज़नाब
बहुत कुछ कमाना पड़ता हैं
मिल जाये सौगात के पल दो पल तो क़बूल करना
सुबह उज्जाले के लिए हर रोज चाँद को डुबाना पड़ता हैं
तुम चाहते है तुम्हें मिल जाये बड़ी आसानी से वो
सच की ज़ुबा से भी झूठ बुलाना पड़ता हैं
वो मिले तो पूछना सबब इश्क़ का
नजरों से पलकों को झुकाना पड़ता हैं
क्यों प्यार करने की बात करते हों ग़ालिब
खुद को फूल से पत्थर हो जाना पड़ता हैं
यूँही तो मोहोंब्बत नही होती उनसे
इश्क़ फरमाना पड़ता हैं।"