वो मनाते मर जायेंगे
हम निभाते मर जायेंगे
इक हसीन चेहरें को हम
रुलाते मर जायेंगे
हैं अजीब सा इम्तहाँ हमारे दरम्यां
ये बंधन हम सुलझाते मर जायेंगे
सोचतें है किसी रोज कहदे तुमसे
या फ़िर खुद को समझाते मर जायेंगे
भूल से भी हमें आज़माया ना करो
किसी भी बहाने से प्यार जताया करो
ख़ुश्बू हो ,कली हो,या हो भम्र
बेचैनियां हमारी खामखा बढ़ाया ना करो
तुझमें रहकर भी खुश ना लगे ग़लत है ये
नादानियां इतनी भी हमारी हमको गिनाया ना करो
शर्म ,लहज़ा सब कमाल हैं अपनी जग़ह
खुद को इतना भी हमसे ना बचाया करो
आदत हो जायेगी तुमको भी हमारी
तुम बात-बात पे यूँ ही मुश्कराया करो
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