मदहोशी" तन्हाई और अकेलेपन में दिल बैठ सा गया था

""मदहोशी" तन्हाई और अकेलेपन में दिल बैठ सा गया था घर में बैठे बैठे मैं पागल हो रहा था लेकिन पता नहीं क्यूँ आज मन में एक अलग खुशी हो रही है यह खुशी तुमसे बात करके या फिर तुमको देखकर आई है इतने दिनों से मैं तुमसे दूर था वक्त और हालात के आगे मजबूर था आज अचानक से तुम घर आ गई मेरी तन्हाई और अकेलेपन को एक पल में उड़ा गई जब तुम माँ के पास बैठकर मुझे मुँह चिढ़ा रही थी मुझे तुम पगली और नासमझ नजर आ रही थी और जब माँ ने बोला मैं चाय बनाने जा रही हूँ तो तुम बोली की रुकिए माँ मैं चाय बनाकर ला रही हूँ यह अपनापन तुमने जताकर मुझे अपने और करीब ला दिया मेरी आँखों में तुम्हें पाने का एक सपना सजा दिया तुम्हारी चाय पीकर तुम्हारी दूरी का एहसास चाय की मिठास में खो गई जैसे जैसे शाम हो रही थी तुम घर जाने को तैयार हो रही थी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था तुमसे दूरी का अहसास दिल दुखा रहा था लेकिन मैं कर भी क्या सकता था माँ ने तुमको जब घर छोड़ने को बोल दिया मानों मुझे एक तोहफा अनमोल दे दिया तुम जब बाइक से उतरकर घर जा रही थी तुमसे दूरी मेरी धड़कनें बढ़ा रही थी लेकिन ना जाने क्यूँ तुम लौटकर मेरे पास आई बिना कुछ कहे मुझे गले लगाई यह तुम्हारा आगोश मेरी आँखों को भिगो गया मेरा दिल तुम्हारे आगोश की मदहोशी में खो गया।। BhaskarSingh"

 "मदहोशी"


तन्हाई और अकेलेपन में दिल बैठ सा गया था
घर में बैठे बैठे मैं पागल हो रहा था
लेकिन पता नहीं क्यूँ आज मन में एक अलग खुशी हो रही है
यह खुशी तुमसे बात करके या फिर तुमको देखकर आई है
इतने दिनों से मैं तुमसे दूर था
वक्त और हालात के आगे मजबूर था
आज अचानक से तुम घर आ गई
मेरी तन्हाई और अकेलेपन को एक पल में उड़ा गई
जब तुम माँ के पास बैठकर मुझे मुँह चिढ़ा रही थी
मुझे तुम पगली और नासमझ नजर आ रही थी
और जब माँ ने बोला मैं चाय बनाने जा रही हूँ
तो तुम बोली की रुकिए माँ मैं चाय बनाकर ला रही हूँ
यह अपनापन तुमने जताकर मुझे अपने और करीब ला दिया
मेरी आँखों में तुम्हें पाने का एक सपना सजा दिया
तुम्हारी चाय पीकर तुम्हारी दूरी का एहसास चाय की मिठास में खो गई
जैसे जैसे शाम हो रही थी
तुम घर जाने को तैयार हो रही थी
मुझे अच्छा नहीं लग रहा था
तुमसे दूरी का अहसास दिल दुखा रहा था
लेकिन मैं कर भी क्या सकता था
माँ ने तुमको जब घर छोड़ने को बोल दिया
मानों मुझे एक तोहफा अनमोल दे दिया
तुम जब बाइक से उतरकर घर जा रही थी
तुमसे दूरी मेरी धड़कनें बढ़ा रही थी
लेकिन ना जाने क्यूँ तुम लौटकर मेरे पास आई
बिना कुछ कहे मुझे गले लगाई
यह तुम्हारा आगोश मेरी आँखों को भिगो गया
मेरा दिल तुम्हारे आगोश की मदहोशी में खो गया।।
BhaskarSingh

"मदहोशी" तन्हाई और अकेलेपन में दिल बैठ सा गया था घर में बैठे बैठे मैं पागल हो रहा था लेकिन पता नहीं क्यूँ आज मन में एक अलग खुशी हो रही है यह खुशी तुमसे बात करके या फिर तुमको देखकर आई है इतने दिनों से मैं तुमसे दूर था वक्त और हालात के आगे मजबूर था आज अचानक से तुम घर आ गई मेरी तन्हाई और अकेलेपन को एक पल में उड़ा गई जब तुम माँ के पास बैठकर मुझे मुँह चिढ़ा रही थी मुझे तुम पगली और नासमझ नजर आ रही थी और जब माँ ने बोला मैं चाय बनाने जा रही हूँ तो तुम बोली की रुकिए माँ मैं चाय बनाकर ला रही हूँ यह अपनापन तुमने जताकर मुझे अपने और करीब ला दिया मेरी आँखों में तुम्हें पाने का एक सपना सजा दिया तुम्हारी चाय पीकर तुम्हारी दूरी का एहसास चाय की मिठास में खो गई जैसे जैसे शाम हो रही थी तुम घर जाने को तैयार हो रही थी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था तुमसे दूरी का अहसास दिल दुखा रहा था लेकिन मैं कर भी क्या सकता था माँ ने तुमको जब घर छोड़ने को बोल दिया मानों मुझे एक तोहफा अनमोल दे दिया तुम जब बाइक से उतरकर घर जा रही थी तुमसे दूरी मेरी धड़कनें बढ़ा रही थी लेकिन ना जाने क्यूँ तुम लौटकर मेरे पास आई बिना कुछ कहे मुझे गले लगाई यह तुम्हारा आगोश मेरी आँखों को भिगो गया मेरा दिल तुम्हारे आगोश की मदहोशी में खो गया।। BhaskarSingh

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