जीना है तो रचना होगा,
नित ख़ुद की राह भी गढ़ना होगा,
चुनौतियां तो लाज़िम है,
अपना मान उन्हें बढ़ना होगा।
संशय भी तो ब्रह्म रचित है,
कुहासा बन मन पर छायेगा।
तुम एक बार बस दो ग़ज नापो,
कितना भी हो छट जाएगा।
सृजन से सृजित मन ना विचलित होगा,
नए द्वार वो खुद खोलेगा,
खुद को बस मान के संबल,
तुम्हें अडिग हो टिकना होगा।
जीना है तो रचना होगा......
कभी स्वांग भी करना होगा,
कभी दंभ भी भरना होगा,
मन रूपी बालक को समझाने,
तुम्हें जतन भी करना होगा।
देखो ये कहीं हार ना माने,
जग प्रपंच को ना पहचाने,
इसकी माया से बिरक्त हो,
अपनी धुन मे रमना होगा।
जीना है तो रचना होगा...
🙏🙏🙏
©Diwakar Tripathi
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