इतनी भीड़में मुझे एक अजीब
मिजाज का मुसाफिर मिला।
इंसानियत के राह पर चलने वाला
अनोखा राहगीर मिला।
जहाँ भी देखी मैंने अपनी कामयाबी
वहा वो हरबार मिला।
मैं ढूंढता रहा एक फूल उसके पास
तो सारा गुलजार मिला।
मैंने चाहा जब भी परखना उसे तो
वो हर तरफ बेसुमार मिला।
चाहा की करदू कविता में शामिल पर
वो मेरी समज से बाहर मिला।
चाहा बन जाऊ उसके जैसा मैं भी मगर
वो मुझसे बहेतर मिला।
न लिख पाउँगा उसे न समझ पाउँगा उसे
मुझे अजीब मुसाफिर मिला।