कोई मन्नत कोई धागा, काम नही आया। सुकूं दे सके ऐसा, | हिंदी शायरी

"कोई मन्नत कोई धागा, काम नही आया। सुकूं दे सके ऐसा, वो मक़ाम नही आया। ज़िंदगी गुजरती रही, बे-हिसाब खबरों में खुशनुमा मगर अब तक, पयाम नही आया। ©Suresh Jadav"

 कोई मन्नत कोई धागा, काम नही आया।
सुकूं दे सके ऐसा, वो मक़ाम नही आया।
ज़िंदगी गुजरती रही, बे-हिसाब खबरों में 
खुशनुमा मगर अब तक, पयाम नही आया।

©Suresh Jadav

कोई मन्नत कोई धागा, काम नही आया। सुकूं दे सके ऐसा, वो मक़ाम नही आया। ज़िंदगी गुजरती रही, बे-हिसाब खबरों में खुशनुमा मगर अब तक, पयाम नही आया। ©Suresh Jadav

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