कितना भी समेट लो..हाथों से फिसलता ज़रूर है.. ये वक | हिंदी Video

"कितना भी समेट लो..हाथों से फिसलता ज़रूर है.. ये वक्त है साहब बदलता ज़रूर है."

कितना भी समेट लो..हाथों से फिसलता ज़रूर है.. ये वक्त है साहब बदलता ज़रूर है.

कितना भी समेट लो..हाथों से फिसलता ज़रूर है..
ये वक्त है साहब बदलता ज़रूर है..

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