ख़ुदाई अपने ख़ालिक़ की न जाने क्यों भुला बैठे
ज़रा से ग़म में हम इंसान को ईश्वर बना बैठे
यहाँ क्यों ढूँढते हो गाँव सी आब-ओ-हवा निर्मल
कहा किसने था तुमसे जो नगर में घर बना बैठे
सुना देंगे उन्हें फिर हम भी अपना हाल-ए-दिल सारा
नज़र मिलते ही हमसे आज अगर वो मुस्कुरा बैठे
सुना है डूब कर वो तिफ़्ल को दिलवा गया लाखों
हमीं बेकार अपने दम पे दरिया को हरा बैठे
वगरना टूटती हरगिज़ न अपनी दोस्ती "बेदिल"
ख़ता सारी हमारी थी तुम्हें हम आजमा बैठे
©पीयूष गोयल बेदिल
#boat