White मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे | हिंदी Poetry

"White मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। मत कड़वी बातें बोलो इतनी,कि माँ-बाप को क्लेश लगे। बच्चों को अपने शिक्षा के संग,नैतिकता का पाठ सिखाओ। बड़ों की अपने इज्जत करना,व अच्छी उनको राह दिखाओ। परिवार सभी मिलजुलकर रहें,कि जन्नत सा परिवेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। अपने प्रति लोगों का दृष्टिकोण,यदि तुम्हें चाहिए सही-सही। तो अपने विचार भी नेक रखो,व करो आचरण वही-वही। मत करो चुनाव वस्त्रों का ऐसा,कि जोकर जैसा वेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। चलचित्रों के परदों पर जो,बातें निर्देशक परोस रहे। परे बहुत सच्चाई से वे,होती हैं तुमको होश रहे। करो अनुसरण बस वे ही बातें,जो तुमको बहुत विशेष लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। मिट्टी के कुल्हड़,दोने व पत्तल,अब प्रचलन से दूर हो गए। प्लास्टिक के गिलास,दोने,पत्तल,हम लेने को मजबूर हो गए। कुछ रीति-रिवाज वे रहने दो तुम,जिसमें अच्छाई का समावेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। बहुवें सब आतीं जो कई घरों की,ले विचार सब जुदा-जुदा। परिवेश व आचरण होते हैं उनके,भिन्न-भिन्न ही सदा-सदा। सास-ससुर सिखलायें उनको गुण,कि पीहर का प्यारा देश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। है मनमौजी अब ऊब चुका,इस दुनिया के दस्तूर से प्यारे। कुछ संस्कार जो सीखे हैं उसने,जीता है उनके ही सहारे। आओ करें समाज-सुधार हम,कुछ उसमें जो अवशेष लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। ©पूर्वार्थ"

 White मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
मत कड़वी बातें बोलो इतनी,कि माँ-बाप को क्लेश लगे।
बच्चों को अपने शिक्षा के संग,नैतिकता का पाठ सिखाओ।
बड़ों की अपने इज्जत करना,व अच्छी उनको राह दिखाओ।
परिवार सभी मिलजुलकर रहें,कि जन्नत सा परिवेश लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
अपने प्रति लोगों का दृष्टिकोण,यदि तुम्हें चाहिए सही-सही।
तो अपने विचार भी नेक रखो,व करो आचरण वही-वही।
मत करो चुनाव वस्त्रों का ऐसा,कि जोकर जैसा वेश लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
चलचित्रों के परदों पर जो,बातें निर्देशक परोस रहे।
परे बहुत सच्चाई से वे,होती हैं तुमको होश रहे।
करो अनुसरण बस वे ही बातें,जो तुमको बहुत विशेष लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
मिट्टी के कुल्हड़,दोने व पत्तल,अब प्रचलन से दूर हो गए।
प्लास्टिक के गिलास,दोने,पत्तल,हम लेने को मजबूर हो गए।
कुछ रीति-रिवाज वे रहने दो तुम,जिसमें अच्छाई का समावेश लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
बहुवें सब आतीं जो कई घरों की,ले विचार सब जुदा-जुदा।
परिवेश व आचरण होते हैं उनके,भिन्न-भिन्न ही सदा-सदा।
सास-ससुर सिखलायें उनको गुण,कि पीहर का प्यारा देश लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।
है मनमौजी अब ऊब चुका,इस दुनिया के दस्तूर से प्यारे।
कुछ संस्कार जो सीखे हैं उसने,जीता है उनके ही सहारे।
आओ करें समाज-सुधार हम,कुछ उसमें जो अवशेष लगे।
मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे।

©पूर्वार्थ

White मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। मत कड़वी बातें बोलो इतनी,कि माँ-बाप को क्लेश लगे। बच्चों को अपने शिक्षा के संग,नैतिकता का पाठ सिखाओ। बड़ों की अपने इज्जत करना,व अच्छी उनको राह दिखाओ। परिवार सभी मिलजुलकर रहें,कि जन्नत सा परिवेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। अपने प्रति लोगों का दृष्टिकोण,यदि तुम्हें चाहिए सही-सही। तो अपने विचार भी नेक रखो,व करो आचरण वही-वही। मत करो चुनाव वस्त्रों का ऐसा,कि जोकर जैसा वेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। चलचित्रों के परदों पर जो,बातें निर्देशक परोस रहे। परे बहुत सच्चाई से वे,होती हैं तुमको होश रहे। करो अनुसरण बस वे ही बातें,जो तुमको बहुत विशेष लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। मिट्टी के कुल्हड़,दोने व पत्तल,अब प्रचलन से दूर हो गए। प्लास्टिक के गिलास,दोने,पत्तल,हम लेने को मजबूर हो गए। कुछ रीति-रिवाज वे रहने दो तुम,जिसमें अच्छाई का समावेश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। बहुवें सब आतीं जो कई घरों की,ले विचार सब जुदा-जुदा। परिवेश व आचरण होते हैं उनके,भिन्न-भिन्न ही सदा-सदा। सास-ससुर सिखलायें उनको गुण,कि पीहर का प्यारा देश लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। है मनमौजी अब ऊब चुका,इस दुनिया के दस्तूर से प्यारे। कुछ संस्कार जो सीखे हैं उसने,जीता है उनके ही सहारे। आओ करें समाज-सुधार हम,कुछ उसमें जो अवशेष लगे। मत बनो आधुनिक इतना तुम,कि संस्कार को ठेस लगे। ©पूर्वार्थ

#आधुनिकता

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