फिसल रहा कुछ हाथ से मानो रेत संभालना चाहा था जिसे

"फिसल रहा कुछ हाथ से मानो रेत संभालना चाहा था जिसे तरह एक खेत भाग उठे ये पतझड़ लौटे मुकुराहटो का सावन सुना है पत्ता भी नही हिलता मर्जी बिना तेरी तू भी किसी को सता सकता हैं समझ नही आया मेरी ©diksha batra"

 फिसल रहा कुछ हाथ से मानो रेत
संभालना चाहा था जिसे तरह एक खेत
भाग उठे ये पतझड़
लौटे मुकुराहटो का सावन
सुना है पत्ता भी नही हिलता मर्जी बिना तेरी
तू भी किसी को सता सकता हैं
समझ नही आया मेरी

©diksha batra

फिसल रहा कुछ हाथ से मानो रेत संभालना चाहा था जिसे तरह एक खेत भाग उठे ये पतझड़ लौटे मुकुराहटो का सावन सुना है पत्ता भी नही हिलता मर्जी बिना तेरी तू भी किसी को सता सकता हैं समझ नही आया मेरी ©diksha batra

#seashore

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