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diksha batra
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वक्त दिया खुद को सुकून सा आया दिल को मुखातिब हुई उस शख्सियत से जो परवाह करे बिन मतलब के प्यार करो अपने आप से आप से अपना आप सा कोई नहीं मां बाप सा ©diksha batra
8 Love
अहमियत होती गर जो अहमियत तो आडंबर की जरूरत न थी शब्दो में जो चीज ना आए बातो में उसके भाव समाए कहना ही गर काफी होता दुनिया में न कोई क्रुद्ध होता, कोई नाराज क्या ही करेगा अब खुद को अहमियत देना सीख रहे है हम चेहरा झलकाता है बेमतलबी शिकायते हम फिर से चुप हो सबके साथ चले ©diksha batra
16 Love
मौन ना रह कुछ तो कह कुछ हुआ क्या? कर मुझसे बयां मेरी भूल बता क्या तुझको गीला ©diksha batra
13 Love
फिसल रहा कुछ हाथ से मानो रेत संभालना चाहा था जिसे तरह एक खेत भाग उठे ये पतझड़ लौटे मुकुराहटो का सावन सुना है पत्ता भी नही हिलता मर्जी बिना तेरी तू भी किसी को सता सकता हैं समझ नही आया मेरी ©diksha batra
नापो समुंद्र की गहराई या आसमां की ऊंचाई बोल जरूर हमारे कड़वे पर नही हम में कोई बुराई ©diksha batra
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