पन्थ विकट है, अन्त निकट है, जाने का अब | हिंदी कविता

"पन्थ विकट है, अन्त निकट है, जाने का अब, कटा टिकट है, जीवन है छल, मृत्यु कपट है, रह-रह उठती, हृदय लपट है, मन में रोष, भृकुटि बंकट है, अब उज्जवल है, काल विगत है, चल थाने में, लिखा रपट है, भले-बुरे को, डाँट डपट है, 'गुंजन' मन में, उठा-पटक है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra"

 पन्थ विकट है, 
           अन्त निकट है,
जाने का अब, 
            कटा टिकट है,
जीवन है छल, 
             मृत्यु कपट है,
रह-रह उठती, 
             हृदय लपट है,
मन   में   रोष, 
           भृकुटि बंकट है,
अब उज्जवल है,
          काल  विगत  है,
चल   थाने  में,
             लिखा रपट है,
भले-बुरे  को, 
               डाँट डपट है,
'गुंजन' मन में, 
              उठा-पटक है,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

पन्थ विकट है, अन्त निकट है, जाने का अब, कटा टिकट है, जीवन है छल, मृत्यु कपट है, रह-रह उठती, हृदय लपट है, मन में रोष, भृकुटि बंकट है, अब उज्जवल है, काल विगत है, चल थाने में, लिखा रपट है, भले-बुरे को, डाँट डपट है, 'गुंजन' मन में, उठा-पटक है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#पंथ विकट है#

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