Shashi Bhushan Mishra

Shashi Bhushan Mishra

I am a science graduate from UP. currently working in an Indian multinational pharma company as Sr RBM. I love poetry. I write poems and Gazals.

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अब वो दिन वो पल न रहा, बचपन वाला कल न रहा, फूल और तितली हैं लेकिन, मन में वो हलचल न रहा, अंदर कुछ बाहर कुछ और, दिल भी अब निर्मल न रहा, मुश्क़िल था आसान कभी, आसाँ आज सरल न रहा, आँख में भी सैलाब थे तब, दरिया में भी जल न रहा, कश्ती भले थी कागज की, बहता मगर चपल न रहा, छुपा छुपाई खेलने वाला, बच्चों का वो दल न रहा, सबके पास समस्या गुंजन, पास किसी के हल न रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #पास  अब वो दिन वो पल न रहा, 
बचपन  वाला  कल न रहा, 

फूल और तितली हैं लेकिन, 
मन में  वो  हलचल  न रहा,

अंदर कुछ बाहर कुछ और, 
दिल भी अब निर्मल न रहा,

मुश्क़िल था आसान  कभी, 
आसाँ  आज  सरल न रहा,

आँख में भी सैलाब थे तब, 
दरिया  में भी  जल न रहा,

कश्ती भले थी कागज की, 
बहता  मगर  चपल न रहा,

छुपा  छुपाई  खेलने वाला, 
बच्चों का  वो  दल  न रहा,

सबके पास समस्या गुंजन,
पास किसी के  हल न रहा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#पास किसी के हल न रहा#

13 Love

मन है एक हवा का झोंका, उड़ने से किसने है रोका, आसमान है ख़ुद के भीतर, दुनिया तो केवल है धोखा, होती है जब प्रिय कल्पना, बिना खर्च रंग हो चोखा, हुई आज हैरत अपनो पर, जबसे छुरी पीठ में भोंका, करते फिरते सब मनमानी, बोलो किसने किस्को टोका, बढ़ी आज रफ़्तार सड़क पे, दुर्घटना में ठोकम ठोंका, हुआ उजाला जब तो देखा, पाँव पड़ा है जख़्मी फोंका, शांति नहीं है मन में 'गुंजन', फिर समझो सारे हैं बोका, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #मन  मन है एक हवा का झोंका, 
उड़ने  से  किसने है  रोका,

आसमान है ख़ुद के भीतर, 
दुनिया तो  केवल है धोखा,

होती है जब प्रिय कल्पना,
बिना खर्च  रंग हो  चोखा,

हुई आज हैरत अपनो पर,
जबसे छुरी पीठ में भोंका,

करते फिरते सब मनमानी,
बोलो किसने किस्को टोका,

बढ़ी आज रफ़्तार सड़क पे, 
दुर्घटना में   ठोकम   ठोंका,

हुआ उजाला जब तो देखा, 
पाँव पड़ा है जख़्मी फोंका, 

शांति नहीं है मन में 'गुंजन',
फिर समझो  सारे हैं बोका,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#मन है एक हवा का झोंका#

10 Love

जाल नहीं फेंको घबराकर, करो मशक्कत जोर लगाकर, दरिया की मछलियाँ सयानी, चल देती हैं चारा खाकर, तोड़ नहीं पाओगे बादल, बरसेगा ये ख़ुद ही आकर, स्वाभिमान को जिन्दा रखना, माया बन जायेगी चाकर, आँसू और मुस्कान ख़ुशी में, मन ही मन मत रखो दबाकर, बाधाओं से मत घबराना, मंज़िल तक दम लेना जाकर, 'गुंजन' छेड़ो तार हृदय का, सुनो मधुर संगीत बजाकर, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #करो  जाल  नहीं  फेंको  घबराकर, 
करो मशक्कत जोर लगाकर, 

दरिया की  मछलियाँ सयानी, 
चल  देती  हैं   चारा  खाकर, 

तोड़   नहीं   पाओगे   बादल, 
बरसेगा  ये  ख़ुद  ही  आकर, 

स्वाभिमान को जिन्दा रखना, 
माया   बन   जायेगी  चाकर, 

आँसू और  मुस्कान  ख़ुशी में, 
मन ही मन मत रखो दबाकर, 

बाधाओं   से   मत   घबराना, 
मंज़िल तक दम लेना जाकर, 

'गुंजन'  छेड़ो  तार  हृदय का, 
सुनो  मधुर  संगीत  बजाकर, 
 ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#करो मशक्कत जोर लगाकर#

12 Love

ज़िन्दगी चलती नहीं क़िताब से, चला करिये उम्र के हिसाब से, भोर में चिड़िया जगाने आ गई, सोईए मत जागिए भी ख़्वाब से, बारिशों में नदी हर नाला लगे, उतर जायेगा महज बहाव से, हरतरफ बैठा शिकारी घात में, आत्मरक्षा कीजिए बचाव से, सजगता से करें रक्षा फसल की, कीटनाशक डाल दें छिड़काव से, प्रेम से पालें कबूतर शांति का, धूप बारिश रोकिए मेहराब से, तिश्नगी भी बढ़ाती बेकली 'गुंजन', मिला करियेगा दिल-ए-बेताब से, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #चला  ज़िन्दगी चलती नहीं  क़िताब से, 
चला  करिये  उम्र के  हिसाब से,

भोर में चिड़िया  जगाने  आ गई, 
सोईए मत जागिए भी ख़्वाब से,

बारिशों में  नदी  हर  नाला लगे, 
उतर  जायेगा  महज  बहाव से,

हरतरफ  बैठा शिकारी  घात में, 
आत्मरक्षा   कीजिए   बचाव से,

सजगता से करें रक्षा फसल की, 
कीटनाशक डाल दें छिड़काव से,

प्रेम से पालें  कबूतर  शांति का, 
धूप  बारिश  रोकिए  मेहराब से,

तिश्नगी भी बढ़ाती बेकली 'गुंजन', 
मिला करियेगा दिल-ए-बेताब से,
   --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#चला करिये उम्र के हिसाब से#

14 Love

दिल से एकबार पुकारा होता, हम-नवाँ और नजारा होता, पलटकर देख ही लेते ख़ुद से, रह-ए-उल्फ़त में सहारा होता, हुस्न होता न खतावार कभी, इश्क तुमसे ही दुबारा होता, तिश्नगी बुझती तसल्ली होती, आँखों आँखों में इशारा होता, रहगुज़र बनके साथ चलते तो, बीच दरिया भी किनारा होता, इस क़दर बेकसी नहीं होती, साथ कुछ वक़्त गुज़ारा होता, चाँद मेहमान न बनता 'गुंजन', ख़्वाब अबतक न कुवांरा होता, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #साथ  दिल से एकबार पुकारा होता, 
हम-नवाँ  और  नजारा  होता, 

पलटकर देख ही लेते ख़ुद से, 
रह-ए-उल्फ़त में सहारा होता, 

हुस्न होता न  खतावार कभी, 
इश्क  तुमसे ही  दुबारा होता, 

तिश्नगी बुझती तसल्ली होती, 
आँखों आँखों में इशारा होता,

रहगुज़र बनके साथ चलते तो,
बीच दरिया भी  किनारा होता,

इस क़दर  बेकसी  नहीं होती, 
साथ कुछ वक़्त गुज़ारा होता,

चाँद  मेहमान न बनता 'गुंजन',
ख़्वाब अबतक न कुवांरा होता,
 ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
         प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#साथ साथ कुछ वक़्त गुज़ारा होता#

10 Love

जाते-जाते जीवनभर की ख़ुशी भरी सौगात दे गया, वो मेरे सपने में आकर सबसे सुंदर रात दे गया, उसकी बातों में सुकून था अपनापन का आलम था, अंधियारे की घोर निशा में दीपक बनकर मात दे गया, अब भी उसकी बातें मन में पंछी सा कलरव करती, भाव शून्य से जीवन में भी प्रेमपूर्ण ज़ज़्बात दे गया, पायल की छम-छम कानों में मधुर रागिनी सी घोले, मेरे हिस्से में आकर वो मुझको भी औक़ात दे गया, साँसों के झूले पर रिमझिम सी फुहार मदमस्त पवन, ऐसे में आकर निर्मोही कपटी मन को घात दे गया, ज़रा ठहर कर पूछो ख़ुद से अपनी असली चाहत को, दीन-धर्म, ईमान, शांति सब ख़ुद में सारी बात दे गया, कैसे कहूँ मुकद्दर मेरे साथ नहीं चलता 'गुंजन', हर पल साथ रहा दामन में पूरी कायनात दे गया, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता #ख़ुशी  जाते-जाते जीवनभर की ख़ुशी भरी सौगात दे गया,
वो  मेरे  सपने  में  आकर  सबसे सुंदर रात दे गया,

उसकी बातों में सुकून था अपनापन का आलम था,
अंधियारे की घोर निशा में दीपक बनकर मात दे गया,

अब भी उसकी बातें मन में पंछी सा कलरव करती,
भाव शून्य से जीवन में भी प्रेमपूर्ण ज़ज़्बात दे गया,

पायल की छम-छम कानों में मधुर रागिनी सी घोले,
मेरे हिस्से में आकर वो  मुझको भी औक़ात दे गया,

साँसों के झूले पर रिमझिम सी फुहार मदमस्त पवन,
ऐसे में आकर निर्मोही  कपटी मन को  घात दे गया, 

ज़रा ठहर कर पूछो ख़ुद से अपनी असली चाहत को,
दीन-धर्म, ईमान, शांति सब ख़ुद में सारी बात दे गया,

कैसे कहूँ  मुकद्दर मेरे  साथ नहीं चलता 'गुंजन',
हर पल साथ रहा दामन में पूरी कायनात दे गया,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
              प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#ख़ुशी भरी सौगात दे गया#

13 Love

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