अब वो दिन वो पल न रहा, बचपन वाला कल न रहा, फू | हिंदी कविता

"अब वो दिन वो पल न रहा, बचपन वाला कल न रहा, फूल और तितली हैं लेकिन, मन में वो हलचल न रहा, अंदर कुछ बाहर कुछ और, दिल भी अब निर्मल न रहा, मुश्क़िल था आसान कभी, आसाँ आज सरल न रहा, आँख में भी सैलाब थे तब, दरिया में भी जल न रहा, कश्ती भले थी कागज की, बहता मगर चपल न रहा, छुपा छुपाई खेलने वाला, बच्चों का वो दल न रहा, सबके पास समस्या गुंजन, पास किसी के हल न रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra"

 अब वो दिन वो पल न रहा, 
बचपन  वाला  कल न रहा, 

फूल और तितली हैं लेकिन, 
मन में  वो  हलचल  न रहा,

अंदर कुछ बाहर कुछ और, 
दिल भी अब निर्मल न रहा,

मुश्क़िल था आसान  कभी, 
आसाँ  आज  सरल न रहा,

आँख में भी सैलाब थे तब, 
दरिया  में भी  जल न रहा,

कश्ती भले थी कागज की, 
बहता  मगर  चपल न रहा,

छुपा  छुपाई  खेलने वाला, 
बच्चों का  वो  दल  न रहा,

सबके पास समस्या गुंजन,
पास किसी के  हल न रहा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

अब वो दिन वो पल न रहा, बचपन वाला कल न रहा, फूल और तितली हैं लेकिन, मन में वो हलचल न रहा, अंदर कुछ बाहर कुछ और, दिल भी अब निर्मल न रहा, मुश्क़िल था आसान कभी, आसाँ आज सरल न रहा, आँख में भी सैलाब थे तब, दरिया में भी जल न रहा, कश्ती भले थी कागज की, बहता मगर चपल न रहा, छुपा छुपाई खेलने वाला, बच्चों का वो दल न रहा, सबके पास समस्या गुंजन, पास किसी के हल न रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#पास किसी के हल न रहा#

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