White सूर्य अस्त होते ही एक चिराग हृदय में जगा लेती हूं
बिस्तर पर जाते ही मैं अपने आप से मिल पाती हूँ
बहुत से सवाल हैं अनसुलझे और पूछती हूँ
और शब्दों के जाल में खुद ही फंस जाती हूँ
मन के आईने में जब खुद का अस्तित्व देखती हूँ
निराधार सा मैं खुद को पाती हूँ
लोगों का वास्तविक अपनत्व तलाश क़रतीं हूँ
मग़र हर जगह षणयंत्र का शिकार हो जाती हूँ
प्रेम और अपनत्व की तलाश में भटकती रहती हूं
आशा की बुझती हुई बाती बार बार जलाती हूँ
टूटता हृदय अब किसपे भरोसा करे सोचती रहती हूं
झूठे प्रेम,और दिखावे में खुद को घिरा पाती हूँ
©Richa Dhar
#Sad_shayri प्रेम और अपनत्व