टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथ

"टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ गीत नया गाता हूँ (अटल बिहारी वाजपेयी) ©sunday wali poem"

 टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ

(अटल बिहारी वाजपेयी)

©sunday wali poem

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ गीत नया गाता हूँ (अटल बिहारी वाजपेयी) ©sunday wali poem

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