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youtube.com/sundaywalipoem
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क्रांति की तलवार में धार वैचारिक पत्थर पर रगड़ने से ही आती है (भगत सिंह) ©sunday wali poem
sunday wali poem
12 Love
कभी - कभी जिंदगी '1857 की क्रांति' जैसी लगती है जिसमें हो बहुत कुछ रहा है मगर संगठित कुछ भी नहीं है ©sunday wali poem
15 Love
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जो भी विचार स्वयं के विरुद्ध जाता है वह स्वयं को ही चाटना शुरु कर देता है (दूधनाथ सिंह) ©sunday wali poem
11 Love
तेरे विचार के तार अधिक जितना चढ़ सके चढ़ाता चल पथ और नया खुल सकता है आगे को पांव बढ़ाता चल (रामधारी सिंह दिनकर) ©sunday wali poem
10 Love
जो कभी रो नहीं सकता वो कभी प्रेम भी नहीं कर सकता रूदन और प्रेम दोनों एक ही स्रोत से निकलते हैं (प्रेमचंद) ©sunday wali poem
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