जो भी विचार स्वयं के विरुद्ध जाता है वह स्वयं को | हिंदी विचार

"जो भी विचार स्वयं के विरुद्ध जाता है वह स्वयं को ही चाटना शुरु कर देता है (दूधनाथ सिंह) ©sunday wali poem"

 जो भी विचार 
स्वयं के विरुद्ध
जाता है
वह स्वयं को ही
चाटना शुरु कर देता है

(दूधनाथ सिंह)

©sunday wali poem

जो भी विचार स्वयं के विरुद्ध जाता है वह स्वयं को ही चाटना शुरु कर देता है (दूधनाथ सिंह) ©sunday wali poem

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