एक जल को चुम्बन
दूसरा पृथ्वी को चुम्बन
तीसरा अग्नि को चुम्बन
चौथा आकाश को चुम्बन
पांचवा वायु को चुम्बन
इन् पंच महाभूतों को मेरा प्रेम भरा चुम्बन,
जिन्होंने तुम्हे बनाया है मेरे लिए।
फिर चुम्बन गौण हो जाते हैं
उनकी प्रतीति गहन होती है
फिर मन को चुम्बन
और अंत में उस चैतन्य को चुम्बन
जो हम सब में एक है
*तुम मेरा सार हो।*
तमको ह्रदय से नमस्कार
©Vikaash Hindwan
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