हम रास्ते में मिले,
फिर कुछ देर साथ चले।
बातचीत शुरू की,
कुछ गुफ्तगू की।
मैंने उसे पैर के छाले दिखाए,
उसने धूप में जलता बदन बताया।
दोनों ने ही एक दूजे के लिए
खूब अफसोस जताया।
घूम रहे थे मदमस्त कभी शहर कभी गांव में।
फिर थक कर बैठ गए हम पेड़ की छाव में।
सुख दुख को बांट रहे थे।
यूं ही रास्ता काट रहे थे।
मंजिल से बेखबर थे,
हम तो सिर्फ सफर थे।
किसी कहां जाना था पूछा ही नहीं।
डगर कब खत्म होगी सोचा ही नही।
फिर अचानक से एक ठहराव आया।
चलते चलते आखिरी पड़ाव आया।
दो रास्ते थे, एक उसका एक मेरा था।
कुछ पल ही सही मैं वहां ठहरा था।
सफर सुखद था।
मंजिल पर पहुंचना दुखद था।
क्यूंकि बिछड़ना था उससे जो हम सफर था।
इस बात से तो मैं रास्ते भर बेखबर था।
भले हमराही से बिछड़ना दुख है मज़बूरी है।
पर मंजिल तक पहुंचना भी तो जरूरी है।
ये सफर भी याद रहेगा,
ये हम सफर भी याद रहेगा।
अलविदा कह कर इस मोड़ पर,
फिर शायद किसी और राह मिलेगा।
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