आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा शायद बचपन या | हिंदी कविता

"आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा शायद बचपन याद आ जाए। बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती शायद बचपन याद आ जाए।। सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर शायद बचपन याद आ जाए। चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क शायद बचपन याद आ जाए। भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन शायद बचपन याद आ जाए। लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन शायद बचपन याद आ जाए। खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन शायद बचपन याद आ जाए। रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन शायद बचपन याद आ जाए।। मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश शायद बचपन याद आ जाए। लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश शायद बचपन याद आ जाए। चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर शायद बचपन याद आ जाए। जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर शायद बचपन याद आ जाए।।"

 आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा
शायद बचपन याद आ जाए।
बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती
शायद बचपन याद आ जाए।।

सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर 
शायद बचपन याद आ जाए।
चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क
शायद बचपन याद आ जाए।

भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन
शायद बचपन याद आ जाए।
लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन
शायद बचपन याद आ जाए।

खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन
शायद बचपन याद आ जाए।
रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन
शायद बचपन याद आ जाए।।

मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश
शायद बचपन याद आ जाए।
लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश
शायद बचपन याद आ जाए।

चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर
शायद बचपन याद आ जाए।
जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर
शायद बचपन याद आ जाए।।

आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा शायद बचपन याद आ जाए। बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती शायद बचपन याद आ जाए।। सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर शायद बचपन याद आ जाए। चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क शायद बचपन याद आ जाए। भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन शायद बचपन याद आ जाए। लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन शायद बचपन याद आ जाए। खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन शायद बचपन याद आ जाए। रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन शायद बचपन याद आ जाए।। मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश शायद बचपन याद आ जाए। लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश शायद बचपन याद आ जाए। चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर शायद बचपन याद आ जाए। जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर शायद बचपन याद आ जाए।।

बचपन

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