Saurabh Baurai

Saurabh Baurai Lives in Dehradun, Uttarakhand, India

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कहता संघर्ष ये ! इक संघर्ष कि एक दस्ता, संघर्ष ही आज सुनाएगा। हर चंचल चित्त की उत्सुकता को, छन्दों से आज मिटाएगा।। कहता संघर्ष ये (2) - सुन तानो का शोर यु बहुधा, मैदान भी मैंने त्यागा था। उग्र उपहास कि अनल में तपकर, शीतल रैन में जागा था।। कलित मुखड़ों की आड़ में मैंने, विष प्याले पलते देखे है। तनिक प्रकाश कि चाह में अक्सर, दिये दुर्बल जलते देखे है।। हर जीवन के कालचक्र पर, मिथ्य यथार्थ को पाया है। इन दोनों से परेय निकलकर, शोभन का साथ निभाया है।। जहाँ भी जाओ इस धरणी पर, हर देह में मुझको पाओगे । किसी मे सोया किसी मे जागा, पर मुझ बिन ना रह पाओगे।। सिद्धि भी मेरी राह से होकर, गुण मेरे सब गाती है। विधि,भाग्य है झूठी बाते, सिर्फ कर्म ही मेरा साथी है।। विचलित चित्त के हर कोने को, छन्द से मेरे मिलवा दो। हर चंचल मन की उत्सुकता को, इन छन्दों से बिलवा दो।। इक संघर्ष कि एक दस्ता, संघर्ष ही आज है सुना रहा। हर चंचल चित्त की उत्सुकता को, छन्दों से आज है मिटा रहा

 कहता संघर्ष ये !

इक संघर्ष कि एक दस्ता,
संघर्ष ही आज सुनाएगा।
हर चंचल चित्त की उत्सुकता को,
छन्दों से आज मिटाएगा।।

कहता संघर्ष ये (2) -

सुन तानो का शोर यु बहुधा,
मैदान भी मैंने त्यागा था।
उग्र उपहास कि अनल में तपकर,
शीतल रैन में जागा था।।
कलित मुखड़ों की आड़ में मैंने,
विष प्याले पलते देखे है।
तनिक प्रकाश कि चाह में अक्सर,
दिये दुर्बल जलते देखे है।।
हर जीवन के कालचक्र पर,
मिथ्य यथार्थ को पाया है।
इन दोनों से परेय निकलकर,
शोभन का साथ निभाया है।।
जहाँ भी जाओ इस धरणी पर,
हर देह में मुझको पाओगे ।
किसी मे सोया किसी मे जागा,
पर मुझ बिन ना रह पाओगे।।
सिद्धि भी मेरी राह से होकर,
गुण मेरे सब गाती है।
विधि,भाग्य है झूठी बाते,
सिर्फ कर्म ही मेरा साथी है।।
विचलित चित्त के हर कोने को,
छन्द से मेरे मिलवा दो।
हर चंचल मन की उत्सुकता को,
इन छन्दों से बिलवा दो।।

इक संघर्ष कि एक दस्ता,
संघर्ष ही आज है सुना रहा।
हर चंचल चित्त की उत्सुकता को,
छन्दों से आज है मिटा रहा

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मेरी न हो सकी तो कुछ ऐसा करदो, मैं जैसा था फिर वैसा करदो। Gulzar

#शायरी #gulzarsaab  मेरी न हो सकी तो कुछ ऐसा करदो,
मैं जैसा था फिर वैसा करदो।

Gulzar

#gulzarsaab

11 Love

मेरी न हो सकी तो कुछ ऐसा करदो, मैं जैसा था फिर वैसा करदो। Gulzar

#शायरी #gulzarsaab  मेरी न हो सकी तो कुछ ऐसा करदो,
मैं जैसा था फिर वैसा करदो।

Gulzar

घनघोर तिमिर फैल चुका है चारो ओर हर आंख रोशनी की तलाश में भटकती नजर आ रही है । जो कल तक रखते थे जज्बा इस शहर को खरीदने का , वो सांसे आज कैद हवाओ कि तलाश में भटकती नजर आ रही है ।। Full Poem COMING SOON...... Thanks yours saur_shivaay

 घनघोर तिमिर फैल चुका है चारो ओर
हर आंख रोशनी की तलाश में भटकती नजर आ रही है । 
जो कल तक रखते थे जज्बा इस शहर को खरीदने का ,
वो सांसे आज कैद हवाओ कि तलाश में भटकती नजर आ रही है ।।


 Full Poem COMING SOON......


Thanks 

yours
saur_shivaay

घनघोर तिमिर फैल चुका है चारो ओर हर आंख रोशनी की तलाश में भटकती नजर आ रही है । जो कल तक रखते थे जज्बा इस शहर को खरीदने का , वो सांसे आज कैद हवाओ कि तलाश में भटकती नजर आ रही है ।। Full Poem COMING SOON...... Thanks yours saur_shivaay

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ढल रही है यह धरा घनघोर तम की छाव से। ओझल सि लिपटी कोई बेड़ी जकड़े मनुज को पाव से।। सत्य अब जख्मी सा होकर कैद होने है लगा। चंद सिक्कों की लालसा में डकैत अब होने लगा।। मच रहा है शोर हर क्षण झूठ की हर जीत का। उल्लास में है हर प्राणी इस अनोखी रीत का।। गिर रहा है श्वेत पंछी धूर्त रण की बाह से। बह रही है रुधिर तटिनी असुर युग के प्रभाव से।। हो रहा नरसंहार हरदिन मौनता और धीर से । अंजान होकर जन है सोया विवश बंध जंजीर से ।।

#कविता  ढल रही है यह धरा
घनघोर तम की छाव से।
ओझल सि लिपटी कोई बेड़ी
जकड़े मनुज को पाव से।।

सत्य अब जख्मी सा होकर
कैद होने है लगा।
चंद सिक्कों की लालसा में
डकैत अब होने लगा।।

मच रहा है शोर हर क्षण 
झूठ की हर जीत का।
उल्लास में है हर प्राणी
इस अनोखी रीत का।।

गिर रहा है श्वेत पंछी 
धूर्त रण की बाह से।
बह रही है रुधिर तटिनी
असुर युग के प्रभाव से।।

हो रहा नरसंहार हरदिन
मौनता और धीर से ।
अंजान होकर जन है सोया
विवश बंध जंजीर से ।।

दुर्दशा इस जग की ।

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आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा शायद बचपन याद आ जाए। बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती शायद बचपन याद आ जाए।। सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर शायद बचपन याद आ जाए। चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क शायद बचपन याद आ जाए। भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन शायद बचपन याद आ जाए। लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन शायद बचपन याद आ जाए। खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन शायद बचपन याद आ जाए। रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन शायद बचपन याद आ जाए।। मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश शायद बचपन याद आ जाए। लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश शायद बचपन याद आ जाए। चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर शायद बचपन याद आ जाए। जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर शायद बचपन याद आ जाए।।

#कविता  आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा
शायद बचपन याद आ जाए।
बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती
शायद बचपन याद आ जाए।।

सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर 
शायद बचपन याद आ जाए।
चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क
शायद बचपन याद आ जाए।

भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन
शायद बचपन याद आ जाए।
लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन
शायद बचपन याद आ जाए।

खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन
शायद बचपन याद आ जाए।
रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन
शायद बचपन याद आ जाए।।

मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश
शायद बचपन याद आ जाए।
लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश
शायद बचपन याद आ जाए।

चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर
शायद बचपन याद आ जाए।
जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर
शायद बचपन याद आ जाए।।

बचपन

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