आओ चखे इन बारिशों कि बूंदों को जरा सा
शायद बचपन याद आ जाए।
बनाये आज भी इक और कागज़ कि कश्ती
शायद बचपन याद आ जाए।।
सोये यु मिट्टी की खुशबू लिये बेखबर
शायद बचपन याद आ जाए।
चले कुछ सिक्कें लिए जेबों में बेधड़क
शायद बचपन याद आ जाए।
भूल जाए यू रोज कि बढ़ती दिलो की उलझन
शायद बचपन याद आ जाए।
लड़े इन सड़को में लिए यारो कि पलटन
शायद बचपन याद आ जाए।
खोजे बीते लम्हो कि खोयी सी परछन
शायद बचपन याद आ जाए।
रोये तकिये में लिए हर यादों के उपवन
शायद बचपन याद आ जाए।।
मांगे यू दुआओं में हर छोटी सी ख्वाइश
शायद बचपन याद आ जाए।
लिपट माँ के गले से करें हर शिफारिश
शायद बचपन याद आ जाए।
चलो अब छोड़ देते है खुद को कहना सिकंदर
शायद बचपन याद आ जाए।
जी लेते इस छोटी ज़िन्दगी को खुशी के दर पर
शायद बचपन याद आ जाए।।
बचपन